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कलाम
मैं ख़याल हूँ किसी और का मुझे सोचता कोई और हैसर-ए-आईना मिरा 'अक्स है पस-ए-आईना कोई और है
सलीम कौसर
कलाम
आईना बनता है रगड़े लाख जब खाता है दिलकुछ न पूछो दिल बड़ी मुश्किल से बन पाता है दिल
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
कलाम
ये मकाँ से ता-सर-ए-ला-मकाँ उसी इक वजूद का ख़्वाब हैये ज़ुहूर दोनों जहान का रुख़ यार ही की नक़ाब है
ग़ौसी शाह
कलाम
रूप उस के नित-नए और आईना-ख़ाने हज़ारमुस्तक़िल सिर्फ़ इक हक़ीक़त उस के अफ़्साने हज़ार
कामिल शत्तारी
कलाम
इश्क़ में तेरे कोह-ए-ग़म सर पे लिया जो हो सो होऐश-ओ-निशात-ए-ज़िंदगी छोड़ दिया जो हो सो हो