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कलाम
आग़ोश-ए-हयात-ओ-मौत में वो सोता है कभी उठता है कभीबीमार-ए-मोहब्बत को तेरे मर-मर के जीना आता है
नाज़ाँ शोलापुरी
कलाम
फ़ना होना मोहब्बत में हयात-ए-जावेदानी हैकिसी क़ातिल पे दम निकले तो लुत्फ़-ए-ज़िंदगानी है
फ़ना लखनवी
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पीर नसीरुद्दीन नसीर
कलाम
दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त दर्द से भर न आए क्यूँरोएँगे हम हज़ार बार कोई हमें सताए क्यूँ