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कलाम
चश्म में ख़ल्क़ की गो मिस्ल-ए-हबाब आता हूँऐ'न-ए-दरिया हूँ हक़ीक़त में बहा जाता हूँ
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
कलाम
बे-अदबाँ न सार अदब दी गए अदब थीं वांजे हूजेहड़े होण मिट्टी दे भांडे कदी न थीवण कांजे हू
सुल्तान बाहू
कलाम
गुज़रना सर से बाम-ए-’इश्क़ का चढ़ना उतरना हैजो मरना है वो जीना है जो सूली है वो ज़ीना है
वतन हैदराबादी
कलाम
फ़ना बुलंदशहरी
कलाम
फ़ना बुलंदशहरी
कलाम
इश्क़ में तेरे कोह-ए-ग़म सर पे लिया जो हो सो होऐश-ओ-निशात-ए-ज़िंदगी छोड़ दिया जो हो सो हो