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कलाम
शोर शहर ते रहमत वस्से, जित्थे बाहू जाले हूबाग़बाँ दे बूटे वांगू, तालिब नित्त सँभाले हू
सुल्तान बाहू
कलाम
फ़ुर्सत-ए-आगही भी दी लज़्ज़त-ए-बे-ख़ुदी भी दीमौत के साथ साथ ही आप ने ज़िंदगी भी दी
माहिरुल क़ादरी
कलाम
अव्वल-ए-शब वो बज़्म की रौनक़ शम्अ' भी थी परवाना भीरात के आख़िर होते होते ख़त्म था ये अफ़्साना भी
आरज़ू लखनवी
कलाम
ये जहाँ भी तू है इस की आख़िरी मंज़िल भी तूबानी-ए-महफ़िल भी तू है ख़ातिम-ए-महफ़िल भी तू
मयकश अकबराबादी
कलाम
शान-ए-ख़ुदा भी आप महबूब-ए-ख़ुदा भी आप हैंतज्सीम-ए-हक़ भी आप हैं और हक़-नुमा भी आप हैं
अहमद नदीम क़ासमी
कलाम
होश किसी का भी न रख जल्वा-गाह-ए-नमाज़ मेंबल्कि ख़ुदा को भूल जा सज्दा-ए-बे-नियाज़ में
असग़र गोंडवी
कलाम
माहिरुल क़ादरी
कलाम
इक़बाल सफ़ीपुरी
कलाम
दो-जहाँ जल्वा-ए-जानाँ के सिवा कुछ भी नहींहम ने कुछ और न देखा तो ख़ता कुछ भी नहीं''
ज़हीन शाह ताजी
कलाम
अंदर भी हू बाहर भी हू'बाहू' कथाँ लुभीवे हूसे रियाज़ ताँ कर कराहाँख़ून जिगर दा पीवे हू
सुल्तान बाहू
कलाम
'अजब क्या गर मुझे 'आलम ब-ईं वुस'अत भी ज़िंदाँ थामैं वहशी भी तो वो हूँ ला-मकाँ जिस का बयाबाँ था