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कलाम
शोर शहर ते रहमत वस्से, जित्थे बाहू जाले हूबाग़बाँ दे बूटे वांगू, तालिब नित्त सँभाले हू
सुल्तान बाहू
कलाम
अंदर भी हू बाहर भी हू'बाहू' कथाँ लुभीवे हूसे रियाज़ ताँ कर कराहाँख़ून जिगर दा पीवे हू
सुल्तान बाहू
कलाम
कुन-फ़-यकून जदों फ़रमाया असाँ भी कोले हासे हूहिक्के ज़ात सिफ़ात रब्बे दी हिक्के जग ढूँडयासे हू
सुल्तान बाहू
कलाम
अधि ला'नत दुनियाँ ताईं सारी दुनियाँ दाराँ हूजैं राह साहिब दे ख़र्च न केती लैन ग़ज़ब दियाँ माराँ हू
सुल्तान बाहू
कलाम
कामिल मुर्शिद ऐसा होवे जो धोबी वाँगूँ छट्टे हूनाल निगाह दे पाक करे न सज्जी साबण घत्ते हू
सुल्तान बाहू
कलाम
रातीं रत्ती नींद न आवे दिहाँ रहे हैरानी हूआरिफ़ दी गल आरिफ़ जाणे क्या जाणे अफ़्सानी हू
सुल्तान बाहू
कलाम
तालिब बणके तालिब होवें ओस नूँ पया गावें हूलड़ सच्चे हादी दा फड़ के ओहो तूँ हो जावें हू
सुल्तान बाहू
कलाम
हस्सण दे के रोवण लयोई दित्ता किस दिलासा हूउमर बंदे दी ऐवें गई ज्यों पाणी विच पतासा हू
सुल्तान बाहू
कलाम
कलमे दी कल तदाँ पई, जद मुर्शिद कलमा दिस्या हूसारी उमर कुफ़र विच जाली बिन मुर्शिद दे दस्याँ हू
सुल्तान बाहू
कलाम
अंदर हू ते बाहर हौ हू बाहर कत्थे जलेंदा हूहू दा दाग़ मोहब्बत वाला हर-दम नाल सड़ेंदा हू
सुल्तान बाहू
कलाम
सुल्तान बाहू
कलाम
कलमे लक्ख करोड़ां तारे वली कीते सै राहीं हूकलमे नाल बुझाए दोज़ख़ जिथ अग्ग बले अज़गाही हू
सुल्तान बाहू
कलाम
सुण फ़रियाद पीरां दिआ पीरा आख सुणावाँ कैनूँ हूतैं जेहा मैनूँ होर न कोई मैं जेहियाँ लक्ख तैनूं हू
सुल्तान बाहू
कलाम
अलिफ़ अलस्त सुणया दिल मेरे जिंद बला कूकेंदी हूहब वतन दी ग़ालब हुई हिक्क पल सौण नून दीनदी हू
सुल्तान बाहू
कलाम
रातीं ख़्वाब न तिन्हाँ हरगिज़ जेड़े वाले हूबाग़ाँ वाले बूटे वाँगूँ तालिब नित्त सँभाले हू