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कलाम
ऐ दिल-ए-पुर-सुरूर-ए-मन नाज़ न बन नियाज़ बनसाक़ी-ए-मस्त-ए-नाज़ की आँखों में सरफ़राज़ बन
शाह मोहसिन दानापुरी
कलाम
तू जोगी बन न बिरोगी बन न लगा के ख़ाक तू बन में जातुझे उस की शान है देखनी किसी मा'रिफ़त के चमन में जा
असग़र निज़ामी
कलाम
मय बन कर मय-ख़ानः बन कर मस्ती का अफ़्सानः बन जामस्ती का अफ़्साना बन कर हस्ती से बेगानः बन जा
ज़हीन शाह ताजी
कलाम
जो हैं डालूँ निगाहें हुस्न में सब जज़्ब हो जाएँकोई तो नाज़ बन जाए कोई अंदाज़ बन जाए
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
कलाम
बन गया ज़ख़्म-ए-जिगर दीदा-ए-बीना बन करदाग़-ए-दिल चमका मिरा अ'र्श का तारा बन कर
इम्दाद अ'ली उ'ल्वी
कलाम
जमाल-ए-इब्तिदा बन कर जलाल-ए-इंतिहा होकरबशर दुनिया में आया मज़हर-ए-शान-ए-ख़ुदा होकर
तुरफ़ा क़ुरैशी
कलाम
फ़ना बन कर मलाल ख़ातिर महज़ून-ए-'अयाँ क्यूँ होकोई ये भी दिगर पूछे कि सरगर्म-ए-फ़ुग़ाँ क्यूँ हो
अज्ञात
कलाम
बन कर मैं कभी मूसा सर-ए-तूर जा रहा हूँई'सा मैं कभी बन कर मर्दे जिला रहा हूँ