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कलाम
न होगी रज़्म अगर तो बज़्म वज्ह-ए-बरहमी होगीकिसी सूरत से हो दुनिया तो इक दिन ख़त्म ही होगी
सीमाब अकबराबादी
कलाम
इम्दाद अ'ली उ'ल्वी
कलाम
अव्वल-ए-शब वो बज़्म की रौनक़ शम्अ' भी थी परवाना भीरात के आख़िर होते होते ख़त्म था ये अफ़्साना भी
आरज़ू लखनवी
कलाम
ख़ुशी से दूर हूँ ना-आश्ना-ए-बज़्म-ए-’इशरत हूँसरापा दर्द हूँ वाबस्ता-ए-ज़ंजीर-क़िस्मत हूँ
शाह मोहसिन दानापुरी
कलाम
मैं तन्हा आब-ओ-रंग बज़्म-ए-इम्काँ हो नहीं सकताये दिल वापस अगर तू इस में मेहमाँ हो नहीं सकता
सीमाब अकबराबादी
कलाम
पढ़ो 'साबिर' कोई ऐसी ग़ज़ल बज़्म-ए-सुख़न-दाँ मेंकि ऐसा कोई गुलदस्ता न हो गुलज़ार-ए-रिज़वाँ में