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कलाम
ये जहाँ भी तू है इस की आख़िरी मंज़िल भी तूबानी-ए-महफ़िल भी तू है ख़ातिम-ए-महफ़िल भी तू
मयकश अकबराबादी
कलाम
फ़ुर्सत-ए-आगही भी दी लज़्ज़त-ए-बे-ख़ुदी भी दीमौत के साथ साथ ही आप ने ज़िंदगी भी दी
माहिरुल क़ादरी
कलाम
शान-ए-ख़ुदा भी आप महबूब-ए-ख़ुदा भी आप हैंतज्सीम-ए-हक़ भी आप हैं और हक़-नुमा भी आप हैं
अहमद नदीम क़ासमी
कलाम
माहिरुल क़ादरी
कलाम
अव्वल-ए-शब वो बज़्म की रौनक़ शम्अ' भी थी परवाना भीरात के आख़िर होते होते ख़त्म था ये अफ़्साना भी
आरज़ू लखनवी
कलाम
इ'श्क़ की इब्तिदा भी तुम हुस्न की इंतिहा भी तुमरहने दो राज़ खुल गया बंदे भी तुम ख़ुदा भी तुम
बेदम शाह वारसी
कलाम
शाकिर कानपुरी
कलाम
यार का मिलना बहुत मुश्किल भी है आसान भी है'आशिक़ी निभना बहुत मुश्किल भी है आसान भी है
शाह सिद्दीक़ सौदागर
कलाम
अंदर भी हू बाहर भी हू'बाहू' कथाँ लुभीवे हूसे रियाज़ ताँ कर कराहाँख़ून जिगर दा पीवे हू
सुल्तान बाहू
कलाम
'इश्क़ है जिस मक़ाम में कोई भी दूसरा नहींमैं भी तिरे सिवा नहीं तू भी मिरे सिवा नहीं