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कलाम
फ़ुर्सत-ए-आगही भी दी लज़्ज़त-ए-बे-ख़ुदी भी दीमौत के साथ साथ ही आप ने ज़िंदगी भी दी
माहिरुल क़ादरी
कलाम
मज़हबाँ दे दरवाज़े उच्चे राह रब्बाना मोरी हूपंडत ते मुलवाणे कोलों छुप छुप लंघिये चोरी हू
सुल्तान बाहू
कलाम
जंगल दे विच शेर मरेला बाज़ पवे विच घर दे हूइश्क़ जिन्हाँ सर्राफ़ न कोई खोट न छड्डे ज़र दे हू
सुल्तान बाहू
कलाम
ज़ख़्मों से कलेजे को भर दे बर्बाद सुकून-ए-दिल कर देओ नाज़ भरी चितवन वाले आ और मुझे बिस्मिल कर दे
मुज़्तर ख़ैराबादी
कलाम
मुझे दे रहे हैं तस्कीं वो मज़ाक़-ए-ग़म बदल करनिकल आई दिल की हसरत मिरे आँसूओं में ढल कर
कामिल शत्तारी
कलाम
फ़राज़ वारसी
कलाम
मुर्शिद मैनूँ हज्ज मक्के दा रहमत दा दरवाज़ा हूकराँ तवाफ़ दुआले क़िबले हज्ज होवे नित्त ताज़ा हू
सुल्तान बाहू
कलाम
एह तन रब्ब सच्चे दा हूजरा विच पा फ़क़ीरा झाती हून कर मिन्नत ख़्वाज ख़िज़र दी तैं अंदर आब हयाती हू
सुल्तान बाहू
कलाम
जद दा मुर्शिद कासा दितड़ा तद दी बेपरवाही हूकी होया जे रातीं जागें मुर्शिद जाग न लाई हू
सुल्तान बाहू
कलाम
इम्दाद अ'ली उ'ल्वी
कलाम
एह तन रब्ब सच्चे दा हुजरा खिड़ियाँ बाग़-बहाराँ हूविच्चे कूज़े विच मुसल्ले विच सज्दे दियाँ ठाराँ हू