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कलाम
आप के ग़म से फ़ैज़याब 'इ'शरत-ए-ज़िंदगी नहींज़िंदगी आप के सुपुर्द ये मिरे काम की नहीं
सीमाब अकबराबादी
कलाम
मेरे ही ग़म की तर्जुमान-ए-फ़ितरत है दीवाना होमुझ को वो दास्ताँ सुना जो मेरी दास्ताँ न हो
शकील बदायूँनी
कलाम
मैं लज-पालाँ दे लड़लगियाँ मिरे तूँ ग़म परे रहंदेमिरी आसाँ उम्मीदाँ दे बूटे हरे रहंदे
अ'ब्दुल सत्तार नियाज़ी
कलाम
हमें क्या ग़म क़ियामत में जो पुर्सिश होने वाली हैकि जब वो फ़ित्ना-गर आया तो फिर मैदान ख़ाली है
दाग़ देहलवी
कलाम
मुझे दे रहे हैं तस्कीं वो मज़ाक़-ए-ग़म बदल करनिकल आई दिल की हसरत मिरे आँसूओं में ढल कर