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कलाम
न हिकायत-ए-ग़म-ए-'इश्क़ है न हदीस-ए-साग़र-ओ-जाम हैतिरा मय-कदा है वो मय-कदा जहाँ लफ़्ज़-ए-होश हराम है
कौसर आरफ़ी
कलाम
तिरी मी’आद-ए-ग़म पूरी हुई ऐ ज़िंदगी ख़ुश होक़फ़स टूटे न टूटे मैं तुझे आज़ाद करता हूँ
हरी चाँद अख़्तर
कलाम
आप के ग़म से फ़ैज़याब 'इ'शरत-ए-ज़िंदगी नहींज़िंदगी आप के सुपुर्द ये मिरे काम की नहीं
सीमाब अकबराबादी
कलाम
तिरा क्या काम अब दिल में ग़म-ए-जानाना आता हैनिकल ऐ सब्र इस घर से कि साहिब-ख़ाना आता है
अमीर मीनाई
कलाम
मेरे ही ग़म की तर्जुमान-ए-फ़ितरत है दीवाना होमुझ को वो दास्ताँ सुना जो मेरी दास्ताँ न हो
शकील बदायूँनी
कलाम
मैं लज-पालाँ दे लड़लगियाँ मिरे तूँ ग़म परे रहंदेमिरी आसाँ उम्मीदाँ दे बूटे हरे रहंदे