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कलाम
कहाँ जाए नज़र और जाए तो जाए किधर हो करवो ख़ुद बैठे हुए हैं हाइल-ए-हद्द-ए-नज़र हो कर
सीमाब अकबराबादी
कलाम
तुझे ढूँढती हैं नज़रें मुझे इक झलक दिखा जामिरी ज़िंदगी के मालिक मिरी ज़िंदगी में आ जा
फ़ना बुलंदशहरी
कलाम
छलक जाए जो मेरी बे-ख़ुदी-ए-दिल का पैमानाअभी हो जाए मय-ख़ाने से बाहर राज़-ए-मय-ख़ाना
तुरफ़ा क़ुरैशी
कलाम
जो तेरी याद फ़ुर्क़त में मिरी दम-साज़ बन जाएतो मेरे दिल की हर धड़कन तिरी आवाज़ बन जाए
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
कलाम
जी चाहे तू शीशा बन जा जी चाहे पैमाना बन जाशीश: पैमाना क्या बनना मय बन जा मय-ख़ाना बन जा
ज़हीन शाह ताजी
कलाम
इल्मों बाझ जे फ़क़र कमावे, काफ़िर मरे दीवाना हूसै वर्हयाँ दी करे इबादत अल्लाह थीं बेगाना हू