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लगी आग दिल में जिगर जल गयाग़ज़ब से किधर का किधर जल गया
दिल आ'शिक़ों के क्यूँ न हो क़ुर्बान-ए-रू-ए-यारपरवाने जल रहे हैं बराबर चराग़ में
क्यूँ जल गया न ताब-ए-रुख़-ए-यार देख करजलता हूँ अपनी ताक़त-ए-दीदार देख कर
दिल वो जल जाए न हो जिस में मोहब्बत तेरीवो ज़बाँ गुंग हो जिस पर न हो मिदहत तेरी
जल्वा-ए-हुस्न-ए-अज़ल दीदा-ए-बीना मुझ सेजाने क्या सोच के फिर कर लिया पर्दा मुझ से
सुपुर्द-ए-हुस्न-ए-अज़ल माइल-ए-बक़ा हो जाफ़ना-ए-'इश्क़ की तकमील में फ़ना हो जा
लकड़ी जल कोएला भयीकोएला जल भयो राख
जब हुस्न-ए-अज़ल पर्दा-ए-इम्कान में आयाबे-रंग ब-हर-रंग हर इक शान में आया
जो वस्ल का तालिब है तो जल आतिश-ए-ग़म मेंजल कर सर-ए-महफ़िल ये ही परवाना कहे है
सब संसार गयो घुल जैसेजल में घुलत बतासा
ख़ुद तुझको जहाँ जलना है वहाँ दामन को बचाएगा कब तकये इ'श्क़ के शो'ले हैं उनमें जल जल के मज़े लेना होगा
मेरा दामन तो जल ही चुका है मगर आँच तुम पर भी आए गवारा नहींमेरे आँसू न पोंछो ख़ुदा के लिए वर्ना दामन तुम्हारा भी जल जाएगा
ज़े-हाल-ए-मिस्कीं मकुन तग़ाफ़ुल दुराय नैनाँ बनाए बतियाँकि ताब-ए-हिज्राँ न-दारम ऐ जाँ न लेहू काहे लगाए छतियाँ
हुस्न-ए-मा'सूम अब फ़ित्ना-गर हो गयापलकें गिर जाएँगी डोर जल जाएगा
माटी में जल अग्नी माटी पवन झकोरमाटी ही मन मोहनी माटी करे क्लेस
'आशिक़ बग़ैर हुस्न-ओ-जवानी फ़ुज़ूल हैजब शम्अ' जल रही हो तो परवाना चाहिए
जल उठे बज़्म-ए-ग़ैर के दर-ओ-बामजब भी हम ख़ानुमाँ-ख़राब आए
क्या शम्अ-ए-अंजुमन पे जलाने का इत्तिहामजलना ही था नसीब में परवाने जल गए
यास का आलम है सब से आस तोड़े आए हैंज़ात वाला के सिवा और आसरा मिलता नहीं
तार-ए-बारान-ए-मुसलसल है मलाइक का दुरूदबहर-ए-तस्बीह ख़ुदावंद जहाँ अज़्ज़-ओ-जल
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