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कलाम
सुण फ़रियाद पीराँ दिआ पीरा अरज़ सुणी कन धर के हूबेड़ा अड़या विच कपराँ दे जिथ मच्छ न बैहन्दे डर के हू
सुल्तान बाहू
कलाम
सुने कौन क़िस्सा-ए-दर्द-ए-दिल मेरा ग़म-गुसार चला गयाजिसे आश्नाओं का पास था वो वफ़ा-शि’आर चला गया
पीर नसीरुद्दीन नसीर
कलाम
इश्क़ माही दे लाइयाँ अग्गीं लग्गी कौण बुझावे हूमैं की जाणाँ ज़ात इश्क़ जो दर दर जा झुकावे हू
सुल्तान बाहू
कलाम
दो दिन की तन-आसानी के लिए तक़दीर का शिकवा कौन करेरहना ही नहीं जब दुनिया में दुनिया की तमन्ना कौन करे
शाह महमूदुल हसन
कलाम
कहते हैं किस को दर्द-ए-मोहब्बत कौन तुम्हें बतलाएगाप्यार किसी से कर के देखो ख़ुद ही पता चल जाएगा
पुरनम इलाहाबादी
कलाम
तुम कौन हो मियाँ कहाँ के हो जो ऐसी नगरी झाँके होहिन्दू हो या मुसलमाँ हो कौन रूप में रहते हो
शाह माज़ुद्दीन मौज
कलाम
ये महफ़िल है यहाँ पर कौन रोकेगा ज़बाँ मेरीतुम्हें दिल थाम कर सुनना पड़ेगी दास्ताँ मेरी