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ख़त है शायद किसी शराबी काख़त के ऊपर लिखा है मय-ख़ाना
हश्र में जिस ने कहा बंदा ख़ता-कारों में हैरहमत उस की बोली चल तू किन गुनहगारों में है
जो चाहे कि क़हत-ओ-वबा दूर होपढ़े या वली-युल-वला दूर हो
उन्हें नामा-बर ने जो ख़त दिया तो ये कह के क़त्ल उसे कियान पहुँचना फिर के वहाँ तेरा यही उस के ख़त की रसीद है
तुम न आओ तो ख़त भेज दोकुछ तबी'अत बहल जाएगी
अज़ सब्ज़ा बर गुल ख़त मी-फ़िदाईदिल मी-फ़रेबी जाँ मी-रुबाई
न देना ख़त-ए-शौक़ घबरा के पहलेमहल मौक़ा' ऐ नामा-बर देख लेना
मैं ख़त तो तुझ को भेजूँ ओ आसमान वालेलेकिन कहाँ कबूतर ऊँची उड़ान वाले
वरक़-ए-गुल को ले उड़ी है नसीमख़त मिरा दस्त-ए-नामा-बर में नहीं
हद भी कुछ ऐ ख़ामा-ए-हसरत रक़मलिख भी चुक ख़त क्या हुआ दफ़्तर हुआ
देखिए कब तक जवाब-ए-ख़त से आँखें शाद होंरास्ता देखा नहीं क़ासिद भटकता जाएगा
ख़त मिरा ले के कबूतर जो पहुँचा उस तकनस्र-ए-ताइर मिरे तालेअ' का सितारा होता
हो चुका 'ऐश का जल्सा तो मुझे ख़त भेजाआप की तरह से मेहमान न बुलाए कोई
रखता नहीं ज़मीन पे मारे ख़ुशी के पाँवशायद जवाब-ए-ख़त कमर-ए-नामा-बर में है
शौक़-ए-जवाब-ए-ख़त है दम-ए-नज़अ' भी 'अमीर'हूँ मुंतज़िर मैं क़ासिद-ए-फ़रख़ुंदा-फ़ाल का
ख़त-ए-तक़्दीर में मा'दूम है अपनी हस्तीयार ने यूँ ही लिखा था मुझे मा'लूम न था
रू-सफेदी मुझे हासिल है सियह-कारी मेंमैं भी क्या ख़त-ए-अ'मल हूँ किसी सौदाई का
क़ियामत तक उठा सकते नहीं हम सर को सज्दा सेख़त-ए-पेशानी अपना आस्तान-ए-यार से बाँधा
दौर जारी है हर वक़्त मय-ए-गुलगूँ कापढ़ ले साक़ी यही तहरीर ख़त-ए-जाम में है
ऐ 'दर्द' हम से यार है अब तो सुलूक मेंख़त ज़ख़्म-ए-दिल को मरहम-ए-ज़ंगार हो गया
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