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फ़र्याद कि 'दर्द' जब तलक मैंतय्यार हूँ कारवाँ नहीं है
ख़फ़ा हो के ऐ 'दर्द' मर तो चला तूकहाँ तक ग़म अपना छुपाता रहेगा
सब के जौहर नज़र में आए 'दर्द'बे-हुनर तू ने कुछ हुनर न किया
नहीं कहते न थे 'दर्द' मियाँ छोड़ ये बातेंपाई न सज़ा और वफ़ा कीजिए उस से
नाला-ए-दिल का असर देख लिया 'दर्द' बसजी में न रह जाए ये आह भी कर देखना
सैलाब-ए-अश्क-ए-गर्म ने आ'ज़ा मिरे तमामऐ 'दर्द' कुछ बहा दिए और कुछ जला दिए
ऐ 'दर्द' मुम्बसित है हर-सू कमाल उस कानुक़सान गर तू देखे तो है क़ुसूर तेरा
ऐ 'दर्द' हम से यार है अब तो सुलूक मेंख़त ज़ख़्म-ए-दिल को मरहम-ए-ज़ंगार हो गया
मैं और 'दर्द' मुझ से ख़रीदारी-ए-बुताँहै एक दिल बिसात में सौ किस हिसाब में
वो ज़िंदगी की तरह एक दम नहीं रहताअगरचे 'दर्द' उसे हम हज़ार रखते हैं
ग़ुंचा शगुफ़्ता होवे ही होवे कि उस में 'दर्द'देखा चमन में जा के तो कुछ और रंग है
है अपनी ये सलाह कि सब ज़ाहिदान-ए-शहरऐ 'दर्द' आ के बैअ'त-ए-दस्त-ए-सुबू करें
अज़ बसक़ि हम ने हर्फ़-ए-दुई का उठा दियाऐ 'दर्द' अपने वक़्त में इबहाम रह गया
मानिंद-ए-हबाब आँख तो ऐ दर्द खुली थीखींचा न पर उस बहर में अ'र्सा कोई दम का
हर चंद नहीं सब्र तुझे 'दर्द' व-लेकिनइतना भी न मिलियो कि वो बद-नाम कहीं हो
मस्त-ए-शराब-ए-इश्क़ वो बे-ख़ुद है जिस को हश्रऐ 'दर्द' चाहे लाए ब-ख़ुद पर न ला सके
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