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कलाम
अज़्म-ए-फ़रियाद! उन्हें ऐ दिल-ए-नाशाद नहींमस्लक-ए-अहल-ए-वफ़ा ज़ब्त है फ़रियाद नहीं
सीमाब अकबराबादी
कलाम
ख़ुदा महफ़ूज़ रखे 'इश्क़ के जज़्बात-ए-कामिल सेज़मीं गर्दूं से टकराई जहाँ दिल मिल गया दिल से
अज़ीज़ मेरठी
कलाम
फिर दे रहा हूँ फ़ितरत-ए-इंसाँ को दर्स-ए-नाज़सर-ए-आस्ताँ हुस्न से उठवा रहा हूँ मैं
सीमाब अकबराबादी
कलाम
ग़म हूँ रह-ए-तलब में ब-क़द्र-ए-कमाल-ए-ज़ौक़मुझ को दिमाग़-ए-साहिल-ओ-मंज़िल नहीं रहा
सीमाब अकबराबादी
कलाम
नसीम-ए-सुब्ह गुलशन में गुलों से खेलती होगीकिसी की आख़िरी हिचकी किसी की दिल-लगी होगी
सीमाब अकबराबादी
कलाम
सुकूँ है कुछ इसी से इज़्तिराब-ए-ज़िंदगानी मेंवगरना ज़ात-ए-बाक़ी पैकर-ए-इंसान-ए-फ़ानी में
सीमाब अकबराबादी
कलाम
वफ़ा होती न जुर्म आईन-ए-उल्फ़त में तो क्या होतागुनहगार-ए-वफ़ा फिर भी गुनहगार-ए-वफ़ा होता
सीमाब अकबराबादी
कलाम
हम ऐ 'सीमाब' वो मसनद-नशीन-ए-मुल्क-ए-मा'नी हैंहमारा ज़िक्र होता है अदब से बादशाहों में