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कलाम
ऐ जान-ए-जहाँ कब तक ये गोशा-ए-तन्हाईसब दीद के तालिब हैं जितने हैं तमाशाई
मौलाना अ’ब्दुल क़दीर हसरत
कलाम
दिखला के झलक चमका के पलक दिल-बर-ओ-ज़मन जादू नज़रीमन छीन लियो तन छीन लियो तर्के शिफ़ा की ’इश्वा-गरी
अज्ञात
कलाम
रू-ए-ज़ेबा गर न देखे चश्म वो है चश्म-कोरतिरे क़दमों पर न हो जब सर वबाल-ए-दोश है
अब्दुल हादी काविश
कलाम
अपनी निगाह-ए-शौक़ को रोका करेंगे हमवो ख़ुद करें निगाह तो फिर क्या करेंगे हम
मौलाना अ’ब्दुल क़दीर हसरत
कलाम
दिल जिगर को आश्ना-ए-दर्द-ए-उल्फ़त कर दियाइक निगाह-ए-नाज़ ने सामान-ए-राहत कर दिया
अब्दुल हादी काविश
कलाम
हो गया मा’लूम टूटा जब तिलिस्म-ए-ज़िंदगीमा'रिफ़त ऐ’न-ए-ख़ुदा की है ये ’इरफ़ान-ए-हयात
अब्दुल हादी काविश
कलाम
तुम्हें मैं जानता हूँ तुम बदलते हो हज़ारों रंगनहीं मैं ग़ैर उठा कर पर्दा-ए-रू-ए-बशर आओ
आग़ा मुहम्मद दाऊद
कलाम
क़ुर्बान-ए-फ़ना एक तजल्ली-ए-तेरी होएज़ुल्मत-कदा-ए-हस्तती-ए-मौहूम से निकले
मिर्ज़ा मोहम्मद अली फ़िदवी
कलाम
ये असीर-ए-रंज-ओ-राहत में असीर-ए-ज़ुल्फ़-ए-जानानाभला क्या समझ सकेगा मुझे ना समझ ज़माना