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कलाम
ये दिल है वो मकाँ जो ला-मकाँ वाले की मंज़िल हैवो लैला है इसी में ये उसी लैला का महमिल है
औघट शाह वारसी
कलाम
काश मिरी जबीन-ए-शौक़ सज्दों से सरफ़राज़ होयार की ख़ाक-ए-आस्ताँ ताज-ए-सर-ए-नियाज़ हो
बेदम शाह वारसी
कलाम
मैं उस मंज़िल में हूँ ये दिल की हालत होती जाती हैकि हर सूरत सज़ा-वार-ए-मोहब्बत होती जाती है
एहसान दानिश
कलाम
सँभल ऐ दिल किसी का राज़ बे-पर्दा न हो जाएये दीवानों की महफ़िल है कोई रुस्वा न हो जाए
अमीर बख़्श साबरी
कलाम
बुतान-ए-माह-वश उजड़ी हुई मंज़िल में रहते हैंकि जिस की जान जाती है उसी के दिल में रहते हैं
दाग़ देहलवी
कलाम
शौक़ से ना-कामी की बदौलत कूचा-ए-दिल भी छूट गयासारी उमीदें टूट गईं दिल बैठ गया जी छूट गया
फ़ानी बदायूँनी
कलाम
वही आबले हैं वही जलन कोई सोज़-ए-दिल में कमी नहींजो लगा के आग गए हो तुम वो लगी हुई है बुझी नहीं
फ़ना निज़ामी कानपुरी
कलाम
ये जहाँ भी तू है इस की आख़िरी मंज़िल भी तूबानी-ए-महफ़िल भी तू है ख़ातिम-ए-महफ़िल भी तू
मयकश अकबराबादी
कलाम
'अक़्ल का हुक्म है उधर तू न जाना ऐ दिल'इश्क़ कहता है कि फिर वाँ से न आना ऐ दिल