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कलाम
बूँदें सब ओस दरिया की मौज से आ मिल जावेंगीसुनियो रे बीर कहारो बैग मेरी डलिया सँवारो
शाह माज़ुद्दीन मौज
कलाम
कौन रूप में गुरु तुम्हारा तिरछे हो या बाँके होजो इस नगरी में आए हो 'मौज' पिया की सुख देखो
शाह माज़ुद्दीन मौज
कलाम
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
कलाम
आंधियों और मौज-ए-तूफ़ाँ से गुज़र जाने के बा'दनाव डूबी है मिरी दरिया उतर जाने के बा'द
साग़ार सिल्लोडी
कलाम
कहीं हूँ मस्त-ए-मय-ख़ाना कहीं हूँ तालिब-ए-मौलाकहीं पीर-ए-मुग़ाँ हूँ और कहीं शैख़-ए-तरीक़त हूँ
ग़ौसी शाह
कलाम
उस बुत-ए-कुर्सी-नशीं का देख जल्वा बाम परहामिल-ए-'अर्श-ए-बरीं ग़श खा के गिर जाने को है
वतन हैदराबादी
कलाम
नमी दानम कि आख़िर चूँ दम-ए-दीदार मी रक़्सममनम बिस्मिल कि ज़ेर-ए-ख़ंजर-ए-खूँ-ख़्वार मी रक़्सम
अज्ञात
कलाम
नज़रों में शक्ल-ए-यार तो हाथों में जाम-ए-'इश्क़ऐसा हूँ रिंद ऐसा इता'अत-गुज़ार हूँ