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कलाम
दीद-ए-जमाल-ए-हक़ हुई हुस्न-ए-निगार देख करबन गए बुत-परस्त हम सूरत-ए-यार देख कर
शब्बीर साजिद मेहरवी
कलाम
ज़बान-ए-जल्वा से है गोया जहाँ का सारा निगार-ख़ानाफ़साना-ए-ग़ैर इक हक़ीक़त हक़ीक़त-ए-ग़ैर इक फ़साना
कामिल शत्तारी
कलाम
फिरे ज़माने में चार जानिब निगार यकता तुम्हीं को देखाहसीन देखा जमील देखा व-लेक तुम सा तुम्हीं को देखा
अज्ञात
कलाम
प्रेम-नगर की राह कठिन है सँभल-सँभल के चला करोराम राम को मन में जपो तुम ध्यान उसी में धरा करो
सय्यद महमूद शाह
कलाम
कहाँ हो तुम चले आओ मोहब्बत का तक़ाज़ा हैग़म-ए-दुनिया से घबरा कर तुम्हें दिल ने पुकारा है
बह्ज़ाद लखनवी
कलाम
परस्तार-ए-मोहब्बत को ख़याल-ए-मा-सिवा क्यूँ होख़ुशी भी तेरे मिलने की शरीक मुद्दआ' क्यूँ हो
माहिरुल क़ादरी
कलाम
फ़ना होना मोहब्बत में हयात-ए-जावेदानी हैकिसी क़ातिल पे दम निकले तो लुत्फ़-ए-ज़िंदगानी है
फ़ना लखनवी
कलाम
अनवर फ़र्रूख़ाबादी
कलाम
दास्ताँ इ'श्क़-ओ-मोहब्बत की किताबों में नहींजो नश्शा आँख में तेरी है शराबों में नहीं