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कलाम
अगर ऐ नसीम-ए-सहर तिरा हो गुज़र दयार-ए-हिजाज़ मेंमिरी चश्म-ए-तर का सलाम कहना हुज़ूर-ए-बंदा-नवाज़ में
अख़्तर शीरानी
कलाम
आरज़ू-ए-वस्ल-ए-जानाँ में सहर होने लगीज़िंदगी मानिंद-ए-शम्अ' मुख़्तसर होने लगी
ग़ुलाम मोईनुद्दीन गिलानी
कलाम
फ़िराक़ गोरखपुरी
कलाम
सहर उस हुस्न के ख़ुर्शीद को जाकर जगा देखाज़ुहूर-ए-हक़ कूँ देखा ख़ूब देखा बा-ज़िया देखा