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कलाम
चढ़ चनना ते कर रौशनाई ज़िकर करेंदे तारे हूगलियाँ दे विच फिरन निमाणे लालाँ दे वणजारे हू
सुल्तान बाहू
कलाम
हाफ़िज़ पढ़ पढ़ करन तकब्बर मुल्लाँ करन वडाई हूसावन माह दे बदलाँ वाँगूँ फिरन किताबाँ चाई हू ।
सुल्तान बाहू
कलाम
ख़ानक़ाह-ए-चिश्त में जिस ने क़दम पहला रखादूसरा उस का क़दम फिर अर्श-ए-बाला पर हुआ
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
कलाम
इलाही क्या करें ज़ब्त-ए-मोहब्बत हम तो मरते हैंये नाले तीर बन-बन कर कलेजे में उतरते हैं
दाग़ देहलवी
कलाम
ये जहाँ भी तू है इस की आख़िरी मंज़िल भी तूबानी-ए-महफ़िल भी तू है ख़ातिम-ए-महफ़िल भी तू
मयकश अकबराबादी
कलाम
फ़ना बुलंदशहरी
कलाम
सच है शह-रग से क़रीं अल्लाह मियाँ है रे मियाँतुझ में ये माद्दा समझने का कहाँ है रे मयाँ