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कलाम
वा'दे पे नहीं आता सच है पर याद तो उस को आती हैउस जान-ए-मोहब्बत का वा'दा बातिल भी है और बातिल भी नहीं
माहिरुल क़ादरी
कलाम
तू नज़र में हो तो तूफ़ाँ क्या है मौज-ए-बह्र क्याक़ा'र-ए-दरिया में भी तू ही है सर-ए-साहिल भी तू
मयकश अकबराबादी
कलाम
बीत गया हंगाम-ए-क़यामत रोज़-ए-क़यामत आज भी हैतर्क-ए-तअल्लुक़ काम न आया उन से मोहब्बत आज भी है
शकील बदायूँनी
कलाम
शाकिर कानपुरी
कलाम
फ़ना बुलंदशहरी
कलाम
तुम्हारा हुस्न-ए-कामिल हर कमी से पाक है लेकिनमोहब्बत लाख कामिल क्यूँ न हो उस की कमी तुम हो