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कलाम
हाफ़िज़ पढ़ पढ़ करन तकब्बर मुल्लाँ करन वडाई हूसावन माह दे बदलाँ वाँगूँ फिरन किताबाँ चाई हू ।
सुल्तान बाहू
कलाम
इलाही क्या करें ज़ब्त-ए-मोहब्बत हम तो मरते हैंये नाले तीर बन-बन कर कलेजे में उतरते हैं
दाग़ देहलवी
कलाम
सच है शह-रग से क़रीं अल्लाह मियाँ है रे मियाँतुझ में ये माद्दा समझने का कहाँ है रे मयाँ
अज़ीज़ुद्दीन रिज़वाँ क़ादरी
कलाम
जब लग ख़ुदी करें ख़ुद नफ़सों तब लग रब्ब न पावें हूशर्त फ़ना नूँ जानें नाहीं, नाम फ़क़ीर रखावें हू
सुल्तान बाहू
कलाम
करें हम किस की पूजा और चढ़ाएँ किस को चंदन हमसनम हम दैर हम बुत-ख़ाना हम बुत हम बरहमन हम
मीर शमसुद्दीन फ़ैज़
कलाम
ख़ादिम हसन अजमेरी
कलाम
कैसे छुपाऊँ राज़-ए-ग़म दीदा-ए-तर को क्या करूँदिल की तपिश को क्या करूँ सोज़-ए-जिगर को क्या करूँ
हसरत मोहानी
कलाम
तालिब-ए-वस्ल-ए-यार हूँ शौक़-ए-जिगर को क्या करूँहिज्र से बे-क़रार हूँ सूद-ओ-ज़रर को क्या करूँ
अज्ञात
कलाम
लेकर जहाँ के हुस्न को शम्स-ओ-क़मर को क्या करूँमुझ को तो तुम पसंद अपनी नज़र को क्या करूँ