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कलाम
'अक़्ल का हुक्म है उधर तू न जाना ऐ दिल'इश्क़ कहता है कि फिर वाँ से न आना ऐ दिल
शाह तुराब अली क़लंदर
कलाम
कम कोई फ़ुक़रा से मिलता है ख़ुदा के वास्तेदफ़-ए’-आ'दा के लिए या कीमिया के वास्ते
शाह तुराब अली क़लंदर
कलाम
ख़याल-ए-पीर का जिस के हुआ है दिल में नशिस्तवो तिफ़्ल ख़ूब जवाँ-बख़्त है और पीर-परस्त
शाह तुराब अली क़लंदर
कलाम
मय-ए-वहदत से ओ साक़ी लबालब एक साग़र देमैं बंदा तेरा हो जाऊँ तू मतवाला मुझे कर दे
शाह तुराब अली क़लंदर
कलाम
मैं पीर-ए-इ'श्क़ हूँ मज्नूँ मुरीद है मेरावो आ'शिक़ी में ख़लीٖफ़ा रशीद है मेरा
शाह तुराब अली क़लंदर
कलाम
ख़ुदा से या रसूल-अल्लाह बंदों की सिफ़ारिश करकि बरसे सब कहें बारान-ए-रहमत ख़ूब सा झर-झर