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जन्नत ही न रास आई दुनिया ही न रास आईअब आगे मियाँ 'रिज़वाँ किस जा पे ठिकाना है
मैं हम-वतन हूँ ग़ालिब-ओ-मीर-ओ-नज़ीर का'सीमाब' रास आए न क्यूँ शाए'री मुझे
वो क़दम ही क्यूँ रखें मंज़िल-ए-मोहब्बत मेंआप के सितम जिन को रास आ नहीं सकते
ख़ुद बरा-ए-इम्तिहाँ महफ़िल में वो हैं जल्वा-गररास आए काश मेरा जज़्बा-ए-मस्ताना आज
मुझे रास आएँ ख़ुदा करे यही इश्तिबाह की साअ'तेंउन्हें ऐतबार-ए-वफ़ा तो है मुझे ऐतबार-ए-सितम नहीं
छुटते ही फिर क़फ़स से लाया गया क़फ़स मेंमुझ को न रास आया गुलशन का आब-ओ-दाना
रास आई न उसे बाग़ की भी आब-ओ-हवा आ’रिज़ा कुछ न घटाअच्छी होने की बस अब नर्गिस-ए-बीमार नहीं उस का हाफ़िज़ है ख़ुदा
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