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कलाम
शकील बदायूँनी
कलाम
पढ़ पढ़ इलम हज़ार कताबाँ आलिम होए भारे हूहर्फ़ इक इश्क़ दा पढ़ न जाणन भुल्ले फिरन विचारे हू
सुल्तान बाहू
कलाम
मज़हबाँ दे दरवाज़े उच्चे राह रब्बाना मोरी हूपंडत ते मुलवाणे कोलों छुप छुप लंघिये चोरी हू
सुल्तान बाहू
कलाम
गूढ़ ज़ुल्मात अंधेर ग़ुबाराँ राह ने ख़ौफ़ ख़तर दे हूआब हयात मुनव्वर चश्मे साए ज़ुलफ़ अंबर दे हू
सुल्तान बाहू
कलाम
प्रेम-नगर की राह कठिन है सँभल-सँभल के चला करोराम राम को मन में जपो तुम ध्यान उसी में धरा करो
सय्यद महमूद शाह
कलाम
राह फ़क़र दा परे परेरे, ओड़क कोई न दिस्से हून उथ पढ़न पढ़ावण कोई न उथ मसले क़िस्से हू
सुल्तान बाहू
कलाम
राह फ़क़र दा तद लधोसे जद हथ फड़योसे कासा हूतरक दुनिया तौ तद थ्योसे जद फ़क़ीर मिलयोसे ख़ासा हू