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कलाम
ज़मीं से नूरयान-ए-आसमाँ-परवाज़ कहते थेये ख़ाकी ज़िंदा-तर पाएँदा-तर ताबिंदा-तर निकले
अल्लामा इक़बाल
कलाम
क़त्ताल-ए-जहाँ मा'शूक़ जो थे सूने पड़े हैं मरक़द उन केजहाँ मरने वाले लाखों थे अब रोने वाला कोई नहीं
आरज़ू लखनवी
कलाम
शकेब जलाली
कलाम
दिल वारस्ता ही अपना अकेला रह गया आख़िरबहुत थे हम-सफ़र लेकिन हर इक पाबंद-ए-मंज़िल था
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
कलाम
उस की ख़ुश्बू के जो ख़्वाहाँ थे क्यूँ न हुएतालिब-ए-बोसा-ए-रुख़ ज़ुल्फ़-ए-दोता क्यूँ न हुए
मुबारक हुसैन मुबारक
कलाम
ये हमीं थे जिन के लिबास पर सर-ए-रह सियाही लिखी गईयही दाग़ थे जो सजा के हम सर-ए-बज़्म-ए-यार चले गए
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
कलाम
अभी तुम भी थे अभी दोस्त भी अभी अपने भी थे पराए भीतिरी याद ने ये ग़ज़ब किया कि तमाम क़िस्सा भुला दिया