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कलाम
अब्र-ए-ख़ुदी से ताबाँ है आफ़्ताब-ए-वहदतगोया है ज़र्रा-ज़र्रा बे-ख़ुद हो मैं ख़ुदा हूँ
वतन हैदराबादी
कलाम
उठा दे पर्दा-ए-इस्म-ए-त’अय्युन को दर-ए-दिल से'अयाँ होगा तुझे जुम्ला-जहाँ अल्लाह ही अल्लाह है
वतन हैदराबादी
कलाम
नज़र आया 'अजब मुझ को तमाशा चश्म-ए-हक़-बीं सेज़माना ढूँढता है हक़ को और हक़ ही ज़माना है
वतन हैदराबादी
कलाम
उस बुत-ए-कुर्सी-नशीं का देख जल्वा बाम परहामिल-ए-'अर्श-ए-बरीं ग़श खा के गिर जाने को है