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कलाम
तुम से जहान-ए-रंग-ओ-बू मुझ से जहान-ए-दर्द-ओ-ग़महुस्न-ए-करिश्मा-साज़ तुम इ’श्क़-ए-करिश्मा-साज़ मैं
बह्ज़ाद लखनवी
कलाम
तू बचा-बचा के न रख उसे तिरा आईना है वो आईनाकि शिकस्ता हो तो ’अज़ीज़-तर है निगाह-ए-आइना-साज़ में
अल्लामा इक़बाल
कलाम
ख़ुदी के साज़ में है उ'म्र-ए-जावेदाँ का सुराग़ख़ुदी के सोज़ से रौशन हैं उम्मतों के चराग़
अल्लामा इक़बाल
कलाम
जिसे मैं शाम-ए-ग़ुर्बत इक शुगून-ए-नहस समझा थावो तारा रहनुमा-ए-सुब्ह-ए-मंज़िल होता जाता है
सीमाब अकबराबादी
कलाम
शिकस्ता दिल में रहते हैं है साबित उन के कहने सेतअ'ज्जुब है पता देते हैं अपना ला-मकाँ हो कर
तसद्दुक़ अ’ली असद
कलाम
शाह तक़ी राज़ बरेलवी
कलाम
मसीहा हो क़ज़ा हो यास हो उम्मीद हो वो होंकोई तो चारा-साज़-ए-ख़ातिर-ए-नासाज़ बन जाए
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
कलाम
जोशिश-ए-गिर्या ता-बके नाला-म-कुन मिसाल-ए-नेया'नी अपने दर्द का आप ही चारा-साज़ बन
शाह मोहसिन दानापुरी
कलाम
ये नग़्मा-ए-दिल-कश मिरा बे-साज़ नहीं हैवो बोल रहे हैं मिरी आवाज़ नहीं है