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कलाम
जला ही देगा तिफ़्ल-ए-अश्क दामान-ए-नज़र अपनाकि इक आतिश का पर काला है ये लख़्त-ए-जिगर अपना
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
कलाम
न हिकायत-ए-ग़म-ए-'इश्क़ है न हदीस-ए-साग़र-ओ-जाम हैतिरा मय-कदा है वो मय-कदा जहाँ लफ़्ज़-ए-होश हराम है
कौसर आरफ़ी
कलाम
जहान-ए-शौक़ की दुनिया परेशाँ है जहाँ मैं हूँहर इक जानिब मिरा जल्वा नुमायाँ है जहाँ मैं हूँ
बह्ज़ाद लखनवी
कलाम
शौक़-ए-नज़ारा है जब से उस रुख़-ए-पुर-नूर काहै मिरा मुर्ग़-ए-नज़र परवाना शम्अ'-ए-तूर का