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कलाम
ज़ाहर वेखां जानी ताईं नाले अंदर सीने हूबिरहों मारी नित फ़िरां मैं हस्सण लोक नाबीने हू
सुल्तान बाहू
कलाम
मिरे होते हुए कोई शरीक-ए-इम्तिहाँ क्यूँ होतिरा दर्द-ए-मोहब्बत भी नसीब-ए-दुश्मनाँ क्यूँ हो
बेदम शाह वारसी
कलाम
ये कैसे बाल बिखरे हैं बनी सूरत है क्यूँ ग़म कीख़बर पाई है बतलाओ तो किस दुश्मन के मातम की