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मिरी ज़िंदगी तो फ़िराक़ है वो अज़ल से दिल में मकीं सहीवो निगाह-ए-शौक़ से दूर हैं रग-ए-जाँ से लाख क़रीं सही
कलीद-ए-'इश्क़ की सीना को दीजिए तो सहीमचा के लूट कभी सैर कीजिए तो सही
अज़ल अबद नूँ सही कीतोसे वेख तमाशे गुज़रे हूचोदाँ तबक़ दिले दे अंदर आतश लाए हुजरे हू
नहीं निगाह में मंज़िल तो जुस्तुजू ही सहीनहीं विसाल मयस्सर तो आरज़ू ही सही
तिरा आस्ताँ जो न मिल सका तेरी राह-ए-गुज़र पे जबीं सहीहमें सज्दा करने से काम है जो वहाँ नहीं तो यहीं सही
न सही चैन से बसर न हुईवो न आए तो क्या सहर न हुई
हर शै को मिरे दिल से भुलाते हुए आतेआना था तो बेहोश बनाते हुए आते
ये तो बताएँ कौन हूँ यकता है तू माना सहीतू है मिरा मौला सही मैं हूँ तेरा बंदा सही
तिरी निगाह ने हर शै का इंतिख़ाब क्यामुझे तो ज़र्रा क्या इस को आफ़ताब क्या
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