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कलाम
तिरे वा'दे को तब हीला-जू न क़रार है न क़याम हैकभी सुब्ह है कभी शाम है कभी सुब्ह है कभी शाम है
दाग़ देहलवी
कलाम
जब लग ख़ुदी करें ख़ुद नफ़सों तब लग रब्ब न पावें हूशर्त फ़ना नूँ जानें नाहीं, नाम फ़क़ीर रखावें हू
सुल्तान बाहू
कलाम
बीत गया हंगाम-ए-क़यामत रोज़-ए-क़यामत आज भी हैतर्क-ए-तअल्लुक़ काम न आया उन से मोहब्बत आज भी है
शकील बदायूँनी
कलाम
अल्लामा इक़बाल
कलाम
अज़्म-ए-फ़रियाद! उन्हें ऐ दिल-ए-नाशाद नहींमस्लक-ए-अहल-ए-वफ़ा ज़ब्त है फ़रियाद नहीं
सीमाब अकबराबादी
कलाम
ऐ दिल-ए-पुर-सुरूर-ए-मन नाज़ न बन नियाज़ बनसाक़ी-ए-मस्त-ए-नाज़ की आँखों में सरफ़राज़ बन