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ता मैं हज़रत-रसूल साहब-जमालहज़रत-ख़्वाजा संग
मन कुंतो मौला फ़-हाज़ा अलीयुन मौलादा-रा-दिल-दा-रा-दिल दर-दानी
मुर्शिद मक्का तालिब हाजी काबा इश्क़ बणाया हूविच हुज़ूर सदा हर वेले करिए हज सवाया हू
यहाँ पीर-ए-मय-ख़ाना हज़रत हमीं हैंसलामत हैं अहल-ए-मलामत हमीं हैं
दूल्हा बनो है आज मोहम्मद देओ मुबारकबादी रेआज बधावा साजन के घर ऐ मैं वारी रे
काहे को ब्याहे बिदेसअरे लखिया बाबुल मोरे काहे को ब्याहे बिदेस
तोरी सूरत के बलिहारी निजामतोरी सूरत के बलिहारी
बन बोलन लागे मोरआ घिर आई दई मारी घटा कारी बन बोलन लागे मोर
अपनी छवि बनाय के जो मैं पी के पास गईजब छवि देखी पीहू की तो अपनी भूल गई
मोरे पिया घर आएऐ री सखी मोरे पिया घर आए
दय्या री मोहे भिजोया रीशाह-निजाम के रंग में
जब यार देखा नैन भर दिल की गई चिंता उतरऐसा नहीं कोई अजब राखे उसे समझाए कर
सकल बन फूल रही सरसोंबन बन फूल रही सरसों
मोरा जोबना नवेलरा भयो है गुलालकैसे घर दीन्हीं बकस मोरी माल
बहुत दिन बीते पिया को देखेबहुत दिन बीते पिया को देखे
जो मैं जानती बिसरत हैं सैय्याँजो मैं जानती बिसरत हैं सैय्याँ घुँघटा में आग लगा देती
बहुत रही बाबुल घर दुल्हन चल तेरे पी ने बुलाईबहुत खेल खेली सखियन सो अंत करी लरिकाई
मोहे अपने ही रंग में रंग दे रंगीलेतो तू साहेब मेरा महबूब-ए-इलाही
बहुत कठिन है डगर पनघट कीकैसे मैं भर लाऊँ मधवा से मटकी
घर नारी गँवारी चाहे जो कहेमैं निजाम से नैनाँ लगा आई रे
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