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अपनी छवि बनाय के जो मैं पी के पास गईजब छवि देखी पीहू की तो अपनी भूल गई
क़ैद-ओ-इत्लाक़ का नक़ाब उठाबे-हिजाबी उठा हिजाब उठा
फ़र्याद कि 'दर्द' जब तलक मैंतय्यार हूँ कारवाँ नहीं है
ऐ निगाह-ए-यास तेरा हो बुराघर तलक रोता हुआ क़ातिल गया
जफ़ा से ग़रज़ इम्तिहान-ए-वफ़ा हैतू कह कब तलक आज़माता रहेगा
मैका सुरतिया लगे तोरी प्यारकुछ अब तलक नहीं मा'लूम दिल का हाल तुम्हें
सुब्ह से शाम तलक हाथ से छुटता नहीं जामचाहिए अपना तख़ल्लुस करे 'जामी' साक़ी
ग़रीब मिट गए पामाल हो गए लेकिनकिसी तलक न तेरा आज तक निशाँ पहुँचा
कल तलक का'बे का करते थे तवाफ़ आप 'अ'ज़ीज़'आज हिन्दू बने ज़ुन्नार बने बैठे हैं
कब तलक रखेगा तिश्ना-काम अपने रिंद कोखोल दे साक़ी हमारे वास्ते मय-ख़ाना अब
पहुँची न उस के कान तलक आह ना-रसाक्या फ़ाएदा ज़मीं से अगर ता-फ़लक गई
ऐ 'ज़फ़र' क़ाइम रहेगी जब तलक अक़्लीम-ए-हिंदअख़्तर-ए-इक़्बाल उस गुल का चमकता जाएगा
जिस का मुमकिन नहीं आना है मिरे पास तलकखींच कर जज़्ब-ए-मोहब्बत तुझे लाना होगा
जब तलक बुर्ज में जमुना है ये खुलने का नहींहै क़सम खाए उठाए हुए गंगा बादल
गर इंतिज़ार कठिन है तो जब तलक ऐ दिलकिसी के वादा-ए-फ़र्दा की गुफ़्तुगू ही सही
'अर्श से फ़र्श तलक मैं ने तुझी को देखाकी 'अता तू ने मुझे चश्म-ए-बसीरत कैसी
दर दर भटक रहे थे मुसलमाँ थे जब तलककाफ़िर हुए तो मंज़िल-ए-मक़्सद को पा लिया
हर हश्र तलक तूल-ए-शब-ए-वस्ल को या-रबता हश्र रुख़-ए-हिज्र नुमूदार न होता
जब तलक हम थे न पाया यार कोफिर तो हम को भी न पाया यार ने
दोस्त ग़म-ख़्वारी में मेरी सई फ़रमावेंगे क्याज़ख़्म के भरते तलक नाख़ुन न बढ़ जावेंगे क्या
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