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कलाम
यार था गुलज़ार था मय थी फ़ज़ा थी मैं न थालाएक़-ए-पा-बोस-ए-जानाँ क्या हिना थी मैं न था
मिर्ज़ा अबुल मुज़फ़्फ़र
कलाम
ये फ़ज़ा ये चाँदनी रातें ये दौर-ए-जाम-ओ-मयमस्तियों में ग़र्क़ हो जाने का मौसम आगया
इक़बाल सफ़ीपुरी
कलाम
पी के मय तेरी दु'आ करता है ये मस्ताना अबहश्र तक क़ाइम रहे साक़ी तिरा मय-ख़ाना अब
महमूद अहमद रब्बानी
कलाम
क़ाज़ी उम्राओ अली जमाली
कलाम
तेरे मय-ख़ाना में ऐ साक़ी ये कैसा जोश हैदेखिए जिस रिंद को भी बे-ख़ुद-ओ-मदहोश है