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कलाम
चश्म-ए-मजनूँ के लिए दीदार-ए-लैला हर जगहवर्ना ग़ैरों के लिए सद पर्दा-ए-महमिल में है
ख़्वाजा हमीदुद्दीन अहमद
कलाम
अगर उस बारगाह-ए-पाक में तेरा गुज़र होवेतो मिस्ल-ए-तज़्किरा इतना तो ऐ बाद-ए-सबा कहिए
कशिश फुलवारवी
कलाम
अज़्म-ए-फ़रियाद! उन्हें ऐ दिल-ए-नाशाद नहींमस्लक-ए-अहल-ए-वफ़ा ज़ब्त है फ़रियाद नहीं
सीमाब अकबराबादी
कलाम
इश्क़ दी गल्ल अवल्ली जेहड़ा शरआ थीं दूर हटावे हूक़ाज़ी छोड़ कज़ाई जाण जद इश्क़ तमाँचा लावे हू
सुल्तान बाहू
कलाम
तरब आश्ना-ए-ख़रोश हो तो नवा है महरम-ए-गोश होवो सुरूद क्या कि छुपा हुआ हो सुकूत-ए-पर्दा-ए-साज़ में
अल्लामा इक़बाल
कलाम
आईना-ए-’अली को देख हुस्न-ए-मोहम्मदी को देखकर के निसार जान-ए-वतन 'आशिक़-ए-सरफ़राज़ बन