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कलाम
ग़म में जीता हूँ तिरे हिज्र में मरता हूँ मैंख़ुद ही बीमार हूँ और ख़ुद ही मसीहा हूँ में
आक़िल रेवाड्वी
कलाम
फ़िराक़ गोरखपुरी
कलाम
याद उन की दिल में रहती है और हिज्र की रातें होती हैंआँखें यूँ झम-झम रोती हैं जैसे बरसातें होती हैं
रियाज़ सुहरावर्दी
कलाम
अव्वल-ए-शब वो बज़्म की रौनक़ शम्अ' भी थी परवाना भीरात के आख़िर होते होते ख़त्म था ये अफ़्साना भी
आरज़ू लखनवी
कलाम
बीत गया हंगाम-ए-क़यामत रोज़-ए-क़यामत आज भी हैतर्क-ए-तअल्लुक़ काम न आया उन से मोहब्बत आज भी है