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जिन के हंगामों से थे आबाद वीराने कभीशहर उन के मिट गए आबादियाँ बन हो गईं
बुलबुलो किस ने किया ख़ाना वीराना तिरा क्यूँ है चिल्लाना तिराजान भी जाए तो ऐ जान न भूलूँगा तुझे याद आता है मुझे
तू नवाज़े तिरा करम वर्नामैं कहाँ और तेरी ज़ात कहाँ
चाँद तारे इधर नहीं आतेवर्ना ज़िंदाँ में आसमाँ है वही
ज़िंदगी ने वफ़ा न की वर्नामैं तमाशा वफ़ा का दिखलाता
हूँ गिरफ़्तार-ए-उल्फ़त-ए-सय्यादवर्ना बाक़ी है ताक़त-ए-परवाज़
हम बड़े ख़ुश-नसीब हैं वर्नाआप को किस से प्यार होता है
वर्ना चले जाओ दरबार में ‘हशमत’रोकेगा न कोई तुम्हें दीवाना समझ कर
था करम जो ख़ुद से वाबस्ता कियावर्ना तुम बहर-ए-हक़ीक़त में हबाब
है कुछ ऐसी ही बात जो चुप हूँवर्ना क्या बात कर नहीं आती
दीवाना बनाना है तो दीवाना बना देवर्ना कहीं तक़दीर तमाशा न बना दे
कुछ मोहब्बत ही से है ज़िद सब कोवर्ना दुनिया में क्या नहीं होता
मैं जहाँ भी हूँ वहीं मंज़िल भी हैवर्ना हर जादा हर एक मंज़िल फ़रेब
हमें ज़िंदा रहने दो ऐ हुस्न वालोअपनी इस ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ को सँभालो वर्ना
शर्त है वाक़िफ़-ए-आदाब-ए-तमाशा होनावर्ना हर जल्वा यहाँ जल्वा-ए-सीनाई है
नाचार बहर-ए-चारा चला आया सर-निगूँवर्ना मैं मुँह दिखाने के क़ाबिल नहीं रहा
शो'ला-ए-हुस्न चमन में न दिखाया उस नेवर्ना बुलबुल को भी परवाना बनाया होता
मेरे हमराही मुझे छोड़ गए याँ वर्नाक़ाफ़िला वाले तो सोतों को जगा लेते हैं
बात तेरी है अगर लोग उड़ाते हैं मज़ाक़वर्ना कुछ इस में बिगड़ता नहीं सौदाई का
'दाग़' मरते हैं देता है रश्क अग़्यारवर्ना मर जाऊँ अभी जान से बेज़ार तो हूँ
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