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कलाम
तू ने ये क्या ग़ज़ब किया ज़ब्त से काम ले लियातर्क-ए-वफ़ा के बा'द भी मेरा सलाम ले लिया
शकील बदायूँनी
कलाम
फ़िराक़ गोरखपुरी
कलाम
तिरी मी’आद-ए-ग़म पूरी हुई ऐ ज़िंदगी ख़ुश होक़फ़स टूटे न टूटे मैं तुझे आज़ाद करता हूँ
हरी चाँद अख़्तर
कलाम
आप के ग़म से फ़ैज़याब 'इ'शरत-ए-ज़िंदगी नहींज़िंदगी आप के सुपुर्द ये मिरे काम की नहीं
सीमाब अकबराबादी
कलाम
तिरा क्या काम अब दिल में ग़म-ए-जानाना आता हैनिकल ऐ सब्र इस घर से कि साहिब-ख़ाना आता है
अमीर मीनाई
कलाम
मेरे ही ग़म की तर्जुमान-ए-फ़ितरत है दीवाना होमुझ को वो दास्ताँ सुना जो मेरी दास्ताँ न हो
शकील बदायूँनी
कलाम
मैं लज-पालाँ दे लड़लगियाँ मिरे तूँ ग़म परे रहंदेमिरी आसाँ उम्मीदाँ दे बूटे हरे रहंदे