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ज़ेर-ए-चर्ख़-ओ-सर ज़मीं न रहेमुझ को कहते हैं तू कहीं न रहे
न सवाल है तख़्त-ओ-ताज का न क़सम से ज़र का ख़याल हैमिरे चारा-गर मिरे मेहरबाँ तिरे एक का सवाल है
कलियाँ ये सुर्ख़ सुर्ख़ नहीं लाला-ज़ार मेंमेहंदी लगी है दस्त-ए-उ'रूस-ए-बहार में
मय-ए-इ'रफ़ाँ ज़ुहूर है मेराबे-ख़ुदी इक शुऊ'र है मेरा
हर जौर-ओ-सितम जिस को गवारा नहीं होतावो चाहने वाला ही तुम्हारा नहीं होता
बिना तोड़ हस्ती की ले गंज-ए-वस्लबड़ा गंज है ज़ेर दीवार के
सारा आ'लम हो गया ज़ेर-ए-हिजाबरुख़ से जब पर्दा उठाया यार ने
क्यूँ मुज़क्कर ज़ेर-ए-पर्दा हो गयाहै मुअन्नस उस पे पर्दा क्यूँ नहीं
दो तो क़तरे हैं जाम के अंदरकर के ज़ेर-ए-नक़ाब पी लीजिए
पा गया इदराक जो ज़ुल्मात कानूर उस का ज़ेर-ए-पा हो जाएगा
ब-ज़ाहिर कहीं ग़ुंचा-ए-दिल से मिला थाकल उस का गरेबाँ-ओ-दस्त-ए-क़ज़ा था
जफ़ा-ओ-जौर किया या वफ़ा हुआ सो हुआहुआ मैं राज़ी जो उस की रज़ा हुआ सो हुआ
जहाँ में ज़ुहूर-ए-बुताँ हो रहा हैनिहाँ था जो कुछ सब अ'याँ हो रहा है
ग़ैरों से मिल के हम से कहाँ तक छुपाएगाबोसों का नील मुँह के छुपाए न जाएगा
ख़ुदा दिखाए किसी गुल-'एज़ार की सूरतशगुफ़्ता-दिल हो गुल-ए-नौ-बहार की सूरत
आप बैठे हैं बालीं पे मेरी मौत का ज़ोर चलता नहीं हैमौत मुझ को गवारा है लेकिन क्या करूँ दम निकलता नहीं है
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