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फ़क़ीराना आए सदा कर चलेमियाँ ख़ुश रहो हम दुआ' कर चले
हंगामा गर्म कुन जो दिल-ए-ना-सुबूर थापैदा हर इक नाले से शोर-ए-नुशूर था
तलवार के तले ही काटी है उ'म्र सारीअबरू-ए-ख़म से उस के हम को नहीं है डर कुछ
मैं गिर्या-ए-ख़ूनीं को रोके ही रहा वर्नाइक दम में ज़माने का याँ रंग बदल जाता
तुंद मय और ऐसे कम-सिन के लिएसाक़िया हल्की सी ला इन के लिए
ज़िक्र-ए-वफ़ा कीजिए उस से जो वाक़िफ़ न होकहते हो किस से ये तुम टुक तो इधर देखना
जूँ शम्अ' न राज़-ए-दिल कहूँगाऐसी भी मिरी ज़बाँ नहीं है
जफ़ा से ग़रज़ इम्तिहान-ए-वफ़ा हैतू कह कब तलक आज़माता रहेगा
हूँ कुश्ता-ए-तग़ाफ़ुल-ए-हस्ती-ए-बे-सबातख़ातिर से कौन कौन न उस ने भुला दिए
हम ने किस रात नाला सर न कियापर उसे आह कुछ असर न किया
बाहर न आ सकी तू क़ैद-ए-ख़ुदी से अपनीऐ ’अक़्ल-ए-बे-हक़ीक़त देखा शु’ऊर तेरा
यारो मिरा शिकवा ही भला कीजिए उस सेमज़कूर किसी तरह तो जाके कीजिए उस से
ऐ 'दर्द' हम से यार है अब तो सुलूक मेंख़त ज़ख़्म-ए-दिल को मरहम-ए-ज़ंगार हो गया
गलीम-ए-बख़्त-ए-सियह-ए-साया-दार रखते हैंयही बिसात में हम ख़ाकसार रखते हैं
इस हस्ती-ए-ख़राब से क्या काम था हमेंऐ नश्शा-ए-ज़ुहूर ये तेरी तरंग है
ने ख़ाना-ए-ख़ुदा है न है ये बुतों का घररहता है कौन इस दिल-ए-ख़ाना-ख़राब में
है अपनी ये सलाह कि सब ज़ाहिदान-ए-शहरऐ 'दर्द' आ के बैअ'त-ए-दस्त-ए-सुबू करें
हम कब के चल बसे थे बरा-ए-मुज़्दा-ए-विसालकुछ आज होते-होते सर-अंजाम रह गया
सैर है तुझ से मिरी जान जिधर को चलिएतू ही गर साथ न होवे तो किधर को चलिए
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