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महमूदी चौतार हजारा पहिरता ।

गरीब दास

महमूदी चौतार हजारा पहिरता ।

गरीब दास

MORE BYगरीब दास

    महमूदी चौतार हजारा पहिरता

    सुलतानी का देख बलख सा सहर था ।।

    सोलह सहस सहेली पदमनी भोग रे

    सतगुरू के उपदेस लिया तज जोग रे ।।

    तुरी अठारह लाख ऊँट गैबर घना

    सीस महल में सैल बाग नौलख बना ।।

    कस्तूरी तन लेप गुलाबी गंध रे

    खाना खाते खूब परम निःचिंत रे ।।

    दल बादल गज ठाठ अदल तूमार रे

    सहदाने सहनाई महल धूमार रे ।।

    हीरे मोती मुकता जवाहिर लाल रे

    निस दिन खूबी खैर खजाने माल रे ।।

    लागा बान बिहंगम सब्द सबूह रे

    भलका मारा ऐंच दूहबर दुह रे ।।

    राज पाट गज ठाठ छाँड़ कफनी लई

    सार सब्द की चोट तोर बख्तर गई ।।

    नजरी नजर निहाल जिन्दा गुरू पीर था

    हरे हाँ रे कहता दास गरीब तबीब कबीर था ।।

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