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शाह नियाज़ अहमद नियाज़ बरेलवी (इस्तिदराक)

डॉ. अय्यूब क़ादरी

शाह नियाज़ अहमद नियाज़ बरेलवी (इस्तिदराक)

डॉ. अय्यूब क़ादरी

MORE BYडॉ. अय्यूब क़ादरी

    जनाब डॉ लतीफ़ हुसैन अदीब बरेलवी का एक फ़ाज़िलाना मक़ाला हज़रत शाह नियाज़ अहमद नियाज़ बरेलवी पर मआ’रिफ़ आ’ज़मगढ, जिल्द94 शुमारा नंबर 5 (नवंबर सन1965 ई’सवी) में शाए’ हुआ है।फ़ाज़िल मक़ाला-निगार ने हज़रत नियाज़ बरेलवी की शाइ’री पर अछूते अंदाज़ में तआ’रुफ़-ओ-तब्सिरा फ़रमाया है।उस मक़ाला के आख़िर में लिखा है :

    “ख़ानक़ाह नियाज़िया के ज़ख़ीरा-ए-नवादिरात में थोड़ा अ’रबी कलाम मज़ीद महफ़ूज़ है जो ज़ेवर-ए-तबा’ से आरास्ता नहीं हुआ”

    अगर डाक्टर साहब ख़ानक़ाह-ए-नियाज़िया से हज़रत नियाज़ के अ’रबी कलाम का कुछ नमूना हासिल कर के इस मक़ाला में शामिल फ़र्मा देते तो इ’ल्मी दुनिया पर एहसान होता, और उनके दा’वे का सुबूत भी फ़राहम हो जाता, हिन्दोस्तान-ओ-पाकिस्तान के बा’ज़ दानिश्वर ज़ाती हैसियत से और कुछ लोग यूनीवर्सिटियों में हिन्दोस्तान के अ’रबी शो’रा-ओ-उदबा पर तहक़ीक़ी काम कर रहे हैं, उनमें हज़रत नियाज़ बरेलवी भी अ’रबी शाइर-ओ-अदीब की हैसियत से मुतआ’रिफ़ हो जाते अगर मुम्किन हो तो आईंदा मआ’रिफ़ में हज़रत नियाज़ का कुछ अ’रबी कलाम शाए फ़र्मा दें ताकि लोग इस्तिफ़ादा कर सकें।

    मुन्दर्जा-बाला इक़्तिबास में कलाम-ए-अ’रबिया पर डाक्टर साहब ने मुन्दर्जा ज़ैल हाशिया लिखा है जो अस्ल में इस इस्तिदराक के लिखने का मुहर्रिक हुआ।हाशिया मुलाहज़ा हो:

    “हमारे फ़ाज़िल दोस्त जनाब अय्यूब क़ादरी ने अपनी “किताब मौलाना फ़ैज़ अहमद बदायूनी में मौलवी अ’ब्दुल क़ादिर बदायूनी की किताब तोहफ़ा-ए-फ़ैज़ के हवाला से हज़रत शाह नियाज़ अहमद नियाज़ को अ’रबी शाइ’री में मौलाना फ़ैज़ अहमद बदायूनी का शागिर्द बताया है। हमें ये बात मानने में तअम्मुल है। मौलाना फ़ैज़ अहमद बदायूनी की पैदाइश सन1808 ई’सवी में हुई थी ।उस वक़्त नियाज़ की उ’म्र49 साल थी। उसके बा’द जब मौलाना फ़ैज़ अहमद बदायूनी शेर-गोई के सिन्-ए-शुऊ’र को पहुंचे तो वो हज़रत नियाज़ के चल-चलाव का ज़माना था।उ’म्र के इस तफ़ावुत से तो यही मा’लूम होता है कि हज़रत नियाज़ ने मौलाना बदायूनी से अ’रबी अशआ’र में इस्लाह के लिए रुजूअ’ नहीं किया।जहाँ तक हमारी मा’लूमात का तअ’ल्लुक़ है हज़रत शाह नियाज़ अहमद नियाज़ ने फ़ारसी,उर्दू, अ’रबी शाइ’री में सिर्फ़ अपनी फ़िक्र को अपना रहनुमा बनाया और किसी हम-अ’स्र के आगे ज़ानू-ए-शागिर्दी तह नहीं किया”।

    डाक्टर लतीफ़ हुसैन अदीब को इस सिलसिला में तसामुह हुआ है। मैंने हज़रत शाह नियाज़ अहमद (बरेलवी) को अ’रबी शाइ’री में मौलाना फ़ैज़ अहमद बदायूनी का शागिर्द नहीं बताया है और डाक्टर साहब ने जो इश्काल पेश किए हैं वो बिल्कुल दुरुस्त हैं ।मैंने मौलाना फ़ैज़ अहमद बदायूनी के तलामिज़ा में जिन साहब का ज़िक्र किया है, उनका नाम “मौलवी नियाज़ अहमद नियाज़ है हज़रत शाह नियाज़ अहमद नियाज़ बरेलवी नही है ,और वह हज़रत शाह नियाज़ अहमद नियाज़ बरेलवी के अ’लावा एक दूसरे शख़्स मुतवत्तिन बदायूनी हैं”। हज़रत शाह नियाज़ अहमद नियाज़ बरेलवी हिन्दोस्तान के मशहूर–ओ-मा’रूफ़ सूफ़िया में शुमार होते हैं।उनका नाम मौलवी नियाज़ अहमद कभी तहरीर हुआ और इस तरह लिखा जाता है।उनके नाम के साथ शाह और बरेलवी ज़रूर होता है। मा’लूम नहीं डाक्टर साहब ने मौलवी नियाज़ अहमद नियाज़ (बदायूनी) को हज़रत शाह नियाज़ अहमद नियाज़ बरेलवी किस क़रीना से समझ लिया। मैंने लिखा है:

    शो’रा-ए-में आप (मौलाना फ़ैज़ अहमद बदायूनी) के मुस्तफ़ीज़ मौलवी फ़ज़्लुद्दीन क़ैस,मौलवी ग़ुलाम शाहिद फ़िदा, मौलवी अहमद हुसैन वहशत, मौलवी नियाज़ अहमद नियाज़ और मौलवी अशरफ़ अ’ली नफ़ीस वग़ैरा मशहूर लोग हुए हैं”

    और हवाला के सिलसिला में राक़िम ने लिखा है:

    इन हज़रात के मुख़्तसर से हालात अकमलुत्तारीख़ जिल्द-ए-अव्वल, तोहफ़ा-ए-फ़ैज़ और तवाबेउ’ल-अनवार में कम-ओ-बेश एक ही इ’बारत के साथ दर्ज हैं

    इन इक़्तिबासात में कहीं ये दर्ज नहीं है कि ब-हवाला-ए-तोहफ़ा-ए-फ़ैज़ मुअल्लफ़ा मौलवी अ’ब्दुल क़ादिर बदायूनी हज़रत शाह नियाज़ अहमद नियाज़ बरेलवी, अ’रबी शाइ’री में मौलाना फ़ैज़ अहमद बदायूनी के शागिर्द हैं।

    अक्मलुत्तारीख़ मुअल्लफ़ा मुहम्मद या’क़ूब ज़िया क़ादरी बदायूनी (मतबूआ’ मतबा’ उसमानी बदायूँ ,सन1915 ई’सवी) तोहफ़ा-ए-फ़ैज़ मुअल्लफ़ा मौलवी अ’ब्दुल क़ादिर बदायूनी (मतबूआ’ फ़ख़्रुल-मताबे’ मेरठ, सन-ए-तबाअ’त न-दारद) और तवाबिउ’ल-अनवार मुअल्लफ़ा मौलवी अनवारुल-हक़ बदायूनी (मतबूआ’ सुब्ह-ए-सादिक़ प्रेस सीतापुर, सन1289 हिज्री) ये तीनों किताबें मौलाना फ़ैज़ अहमद बदायूनी के मामूं, ख़ुस्र और उस्ताज़ मौलाना फ़ज़्ल रसूल बदायूनी (वफ़ात1289 हिज्री1872 ई’सवी) के हालात में हैं। इन किताबों में बदायूँ के बहुत से उ’ल्मा-ओ-मशाहीर और उदबा-ओ-शो’रा का ज़िक्र मुख़्तलिफ़ उ’न्वान से गया है। मेरे ख़याल में डाक्टर साहब को उन माख़ज़ों की तरफ़ भी रुजूअ’ करना चाहिए था।डाक्टर लतीफ़ हुसैन साहब को नाम के इश्तिराक की वजह से तसामुह हुआ, वर्ना इस हाशिया के लिखने की मुतलक़ ज़रूरत थी।

    हज़रत शाह नियाज़ अहमद नियाज़ बरेलवी के सिलसिला में एक अहम माख़ज़ मजमूआ’-ए-नग़्ज़ तालीफ़ हकीम अबु-अल-क़ासिम मीर क़ुद्रतुल्लाह, अल-मुतख़ल्लिस ब- क़ासिम है।क़ुद्रतुल्लाह क़ासिम सिर्फ़ हज़रत नियाज़ बरेलवी के मुआ’सिर बल्कि किसी हद तक उस्ताद भी हैं।ग़ालिबन डाक्टर लतीफ़ हुसैन साहब के पेश-ए-नज़र ये तज़्किरा नहीं रहा है। इस तज़्किरा से मा’लूम होता है कि हज़रत नियाज़ ने उ’लूम-ए-रस्मिया और फ़ुनून-ए-कस्बिया की तहसील में बहुत मेहनत बर्दाश्त की और इस में वो ख़्वाजा अहमद ख़ां के शागिर्द हैं। ख़्वाजा अहमद ख़ान उस ज़माने में दिल्ली की महफ़िल-ए-सुख़न के नामवर उस्ताद थे, और हज़रत नियाज़ ने भी शाइ’री में उन्हीं से इस्तिफ़ादा फ़रमाया। मजमूआ’-ए-नग़्ज़ का इक़्तिबास मुलाहज़ा हो:

    “मियां नियाज़ अहमद सल्लमहुल्लाहुस्समद तवल्लुदश दर क़स्बा-ए-सहरंद-ओ- नश्व-ओ-नुमा-ए-वय दर शाहजान-आबाद सानहल्लाहु अ’निश्श्र्र्र वल-फ़साद वाक़े’ शुद:, मर्द-ए-फ़ाज़िल-ओ-साहिब-ए-ज़ेहन-ए-सलीम-ओ-शख़्स-ए-आ’लिम-ओ-मालिक-ए-तबा’-ए- क़वीम अस्त मशक़्क़त-हा-ए-बिस्यार दर तहसील-ए-उ’लूम-ए-रस्मिय: कशीद:-ओ-मेहनतहा-ए-बे-शुमार दर इस्तिहसाल-ए-फ़ुनून-ए-कस्बिया ब-वय रसीद:,शागिर्द-ए-रशीद-ए-हिब्र-ए- मुहक़्क़िक़, फ़हल-ए-मुदक़्क़िक़,मरजा’-ए-तुल्लाब-ए-जहाँ मौलवी ख़्वाजा अहमद ख़ान अस्त”

    शायद यहाँ ये ज़िक्र भी बे-महल हो कि शाइरी में ख़्वाजा अहमद ख़ां के शागिर्द मुहम्मद मीर असर (बिरादर-ए-ख़्वाजा मीर दर्द) आ’ज़म ख़ां आ’ज़म, ग़ुलाम नासिर जर्राह, सद्रुज़्ज़माँ मौलवी इस्माई’ल फ़िदा अल-मुख़ातब ब-आ’क़िबत महमूद ख़ां और क़ुद्रतुल्लाह क़ासिम जैसे दिल्ली के मशहूर लोग थे।

    हज़रत शाह नियाज़ अहमद नियाज़ बरेलवी ने उ’लूम-ए-दीनिया की तकमील हज़रत मौलाना फ़ख़्रुद्दीन देहलवी (वफ़ात सन1199 हिज्री) से फ़रमाई है।

    डाक्टर लतीफ़ हुसैन साहब ने अपने मक़ाला में लिखा है:

    “मौलाना फ़ख़्रुद्दीन के हुक्म के ब-मूजिब बरेली पहुंचे, मस्जिद बीबी के जुनूबी हुज्रे में क़ियाम फ़रमाया, रामपूर फिर गए, जहाँ हज़रत शाह अ’ब्दुल्लाह क़ादरी के दस्त-ए-मुबारक पर बैअ’त की”

    शाह नियाज़ अहमद साहब ने शाह बग़दादी से रामपूर में नहीं बल्कि दिल्ली में बैअ’त की, इसके बा’द वो बरेली पहुंचे, चुनांचे क़ुद्रतुल्लाह लिखते हैं:

    ‘’ दर आख़िरहा दस्त-ए-बैअ’त ब-दसत-ए-हक़-परसत-ए-सय्यद अ’ब्दुल्लाह क़ादरी रहमतुल्लाह अ’लैह अज़ औलाद-ए-अमजाद-ए-हज़रत ज़ू-लिसानैन इमामुल-फ़रीक़ैन ग़ौस-ए- समदानी महबूब-ए-सुब्हानी क़ुद्दिसा सिर्रहुल-अ’ज़ीज़ बग़्दादी अल-मौलिद बूदंद, दाद: -ओ-मिसाल-ए-इजाज़त-ए-इरशाद-ए-तालिबान-ओ-ख़िर्क़:-ए-ख़िलाफ़त-ए-तर्बियत-ए-सालिकाँ याफ़्त: ब-ता’लीम-ए-तलब:-ओ-इरशाद दर बल्द:-ए-बरेली नशिस्त: फ़क़ीराना अय्याम ब-काम-ए-दिल बसर मी-बुर्द गाह शे’र-ए-फ़ारसी-ए-सूफ़ियाना-ओ-रेख़्त:-ए-फ़क़ीरान: मी-गोयद’’

    शाह नियाज़ अहमद बरेलवी के सवानेह-निगार नसीरुद्दीन हुसैन क़ादरी और करामात-ए-निज़ामिया के मुअल्लिफ़ हाफ़िज़ मुहम्मद फ़ाइक़ ने भी हज़रत नियाज़ बरेलवी का शाह बग़्दादी से दिल्ली में बैअ’त होना लिखा है डाक्टर साहब ने लिखा है:

    ‘’हज़रत शाह साहब को हदीस-ए-नबवी में ख़ुसूसी उ’बूर हासिल था, जिसका दर्स वो तमाम उ’म्र देते रहे’’

    हज़रत शाह नियाज़ अहमद नियाज़ बरेलवी बर्र-ए-सग़ीर पाक-ओ-हिन्द में एक शैख़-ए-तरीक़त और सूफ़ी शाइ’र की हैसियत से मुतआ’रफ़-ओ-मशहूर हैं और उनका ज़िक्र भी मशाइख़ के तज़्किरों मसलन ख़ज़ीनतुल-अस्फ़िया(ग़ुलाम सरवर लाहौरी) मनाक़िब-ए- फ़रीदी (अहमद अख़्तर मिर्ज़ा) तज़्किरा-ए-ग़ौसिया(ग़ौस अ’ली पानीपत्ती )तज़्किरा-ए-औलिया-ए-हिन्द (अहमद अख़्तर मिर्ज़ा) और तारीख़-ए-मशाइख़-ए-चिश्त (प्रोफ़ेसर ख़लीक़ अहमद निज़ामी) में सूफ़ी ही की हैसियत से मिलता है, या फिर शो’रा के तज़्किरों मसलन रियाज़ुल-फ़ुसहा(मुसहफ़ी) मजमूआ’-ए-नग़्ज़ (क़ुद्रतुल्लाह क़ासिम) गुलिस्तान-ए-बे ख़िज़ाँ (बातिन) गुलशन-ए-बेख़ार(शेफ़्ता)और तज़्किरा-ए-सुख़न-ए-शो’रा(नस्साख़) में शाइ’र की हैसियत से ज़िक्र है, उ’लमा-ए-मुहद्दिसीन के ज़मुरा में कहीं भी हज़रत नियाज़ बरेलवी का तज़्किरा नहीं मिलता, और बर्र-ए-सग़ीर पाक-ओ-हिन्द के मुहद्दिसीन की अस्नाद में उनका ज़िक्र आता है।

    ख़ानक़ाह-ए-नियाज़िया नसीरिया (बदायूँ) की तरफ़ से शाए’ शूदा नाज़-ओ-नियाज़ और ख़ानक़ाह-ए-नियाज़िया निज़ामिया (बरेली) की तरफ़ से नश्र-कर्दा करामात-ए- निज़ामिया किताबें भी हज़रत नियाज़ बरेलवी की इस हैसियत पर कोई रौशनी नहीं डालतीं, और इस बाब में यकसर ख़ामोश हैं।मा’लूम नहीं डाक्टर लतीफ़ हुसैन अदीब साहब ने ये बात किस माख़ज़ से लिखी है ।अगर वो उनकी मुहद्दिसाना हैसियत को भी तारीख़ी हवालों से ज़ाहिर कर दें तो ये एक बड़ी ख़िदमत होगी।

    स्रोत :
    • पुस्तक : Monthly Ma'arif

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