ज़िक्र-ए-ग़ौस-ए-आ’ज़म अ’ब्दुल-क़ादिर जीलानी - मैकश अकबराबादी
ज़िक्र-ए-ग़ौस-ए-आ’ज़म अ’ब्दुल-क़ादिर जीलानी - मैकश अकबराबादी
मयकश अकबराबादी
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इस्म-ए-मुबारक अ’ब्दुल-क़ादिर,लक़ब मुहीउद्दीन और कुन्नियत अबू-मोहम्मद है।नसब-ए-मुबारक वालिद-ए-बुज़ुर्गवार की तरफ़ से इमाम-ए-दोउम हज़रत सय्यिदिना हसन अ’लैहिस्सलाम तक और मादर-ए-मोहतरमा की जानिब से इमाम-ए-सेउम हज़रत सय्यदुश्शुहदा इमाम हुसैन अ’लैहिस्सलाम तक पहुंचता है।
शैख़ अ’ब्दुल-हक़ मुहद्दिस दिहलिवी ने आपका ज़िक्र-ए-मुबारक और सन-ए-विलादत-ओ-वफ़ात का ज़िक्र इस तरह किया है।
क़ुतुबुल-अक़ताब,फ़र्दुल-अहबाब,ग़ौसुल-आ’ज़म,शैख़-ए-शुयूख़ुल-आ’लम,ग़ौसुस्सक़लैन,इमामुत्ताइफ़ीन,शैख़ुत्तालिबीन,शैख़ुल-इस्लाम मुहीउद्दीन अबू मोहम्मद अ’ब्दुल-क़ादिर अल-हसनी-अल-हुसैनी अल-जीलानी रज़ी-अल्लाहु अ’न्हु जो पैग़मबर सल्लल्लाहु अलैहि-व-सल्लम के अहलियत के कामिल-तरीन औलिया और हुसैनी सादात के सरदारों में से थे।आप अ’ब्दुल्लाह महज़ इब्न-ए-हसन मुसन्ना बिन इमामुल-मुस्लिमीन हसन इब्न-ए-अमीरुल-मुमिनीन अ’ली मुर्तज़ा रिज़वानुल्लाहि अ’लैहिम अज्मई’न के पोतों में से थे।आपकी निस्बत जील की तरफ़ है जिसे जीलान और गीलान भी कहते हैं।तारीख़-ए-तौलीद सन 470 हिज्री और एक रिवायत के ब-मोजिब सन 471 हिज्री है। तदरीस और फ़त्वा की मुद्दत तेंतीस साल और वा’ज़-ओ-इर्शाद-ए-ख़ल्क़ की मुद्दत चालीस साल है।उ’म्र नव्वे साल और सन-ए-वफ़ात 561 हिज्री है।
अठारह साल की उ’म्र में बग़्दाद तशरीफ़ लाए और वहाँ के उ’लमा,मशाइख़ और अइम्मा की सोहबत में रहे और मुस्तनद उ’लमा-ओ-मुहद्दिसीन से इ’ल्म-ए-हदीस-ओ-क़ुरआन वग़ैरा हासिल किया।यहाँ तक कि तमाम उ’लूम में तमाम उ’लमा से बढ़ गए और तमाम उ’लूम में मर्जा’-ए-ख़ास हो गए।उसके बा’द ख़ुदा ने आपको मख़्लूक़ पर ज़ाहिर फ़रमाय और क़ुबूल-ए-अ’ज़ीम अ’ता फ़रमाया।आपकी अ’ज़्मत अ’वाम-ओ-ख़्वास के दिलों मे डाल दी गई और मर्तबा-ए-क़ुतुबियत-ए-कुब्रा और विलायत-ए-उ’ज़्मा से आप को मख़्सूस फ़रमाया गया।रू-ए-ज़मीन से फ़ुक़हा,उ’लमा,तलबा,फ़ुक़रा आपसे फ़ैज़ हासिल करने के लिए हाज़िर होने लगे।
तमाम मौजूदात को आपके क़ब्ज़ा-ओ-तसर्रुफ़ में दे दिया गया और सबके दिल आपके लिए मुस्ख़्ख़र कर दिए गए।यहाँ तक कि आपको हुक्म दिया गया और आपने फ़रमाया ‘‘मेरा ये क़दम तमाम औलिया की गर्दन पर है’’ उस वक़्त क़रीब और दूर के तमाम औलियाउल्लाह ने ख़्वाह वो हाज़िर हों या ग़ाएब अपने सर-ए-इंक़ियाद झुका दिए।पस हुज़ूर क़ुतुब-ए-सुल्तान,वुजूद-ए-इमामुस्सादीक़ीन,हुज्जतुल-आ’रिफ़ीन,रूहुल-मा’रिफ़त,क़ुतुबुल-हक़ीक़त,अल्लाह के ख़लीफ़ा औऱ उसकी किताब और उसके रसूल के वारिस हैं।आप वुजूद-ए-बहत(मुजर्रद),सुल्तान-ए-तरीक़त और अज़ रू-ए-तहक़ीक़ वुजूद में तसर्रुफ़ करने के मुख़्तार हैं।’’
-अख़्बारुल-अख़्यार (तर्जुमा)
व-फ़ी तारीख़िल-इमामिलयाफ़ई’ रहमतुल्लाहि अ’लैहि व–अम्मा करामतुहु या’नी अश्शैख़ अ’ब्दुल-क़ादिर रज़ी-अल्लाहु अ’न्हु फ़ख़ारिजतुन अ’निल हस्रि व-क़द अख़्बरनी मन अद्र-क मिन-इ’लामिल अइम्मती अन्ना करामतहु तवातरत औ क़रुबत मिनत्तवातुर-व-मा’लूमुन बिल-इत्तिफ़ाक़ि अन्नाहु लम यज़हर ज़ुहू-र करामतिही लिग़ैरिहि मिन शुयूख़ुल-आफ़ाक़।
(नफ़्हातुल-उन्स जामी)
(तर्जुमा)
इमाम याफ़ई’ रहमतुल्लाहि अ’लैह ने अपनी तारीख़ में लिख़ा है कि हज़रत ग़ौस-ए-पाक की करामतें हद्द-ए-शुमार से बाहर हैं।मैंने जिन मश्हूर इमामों की ज़ियारत की है उन्होंने बयान किया कि हज़रत की करामतें मुतावातिर या क़रीब ब-मुतवातिर हैं।और बिल-इत्तिफ़ाक़ मा’लूम है कि सारे ज़माने में किसी बुज़ुर्ग से ऐसी करामात का ज़ुहूर नहीं हुआ।
शैख़ बुज़ुर्ग शहाबुद्दीन ख़मर सुहरवर्दी फ़र्मूद:अस्त।
कानश्शैख़ु अ’ब्दुल क़ादिर सुल्तानत्तरीक़-अल-मुतसर्रिफ़ फ़िल वजूदी अलत्तहक़ीक़ व कानात लहुल यदुल मब्सुता मिनल्लाहि फ़ित्तस्रीफ़िल फ़े’लेलि-ख़ारिक़िलिद्दाएम।
(अख़्बारुल-अख़्यार)
हज़रत शैख़ुश्शुयूख़ शहाबुद्दीन सुहरवर्दी ने फ़रमाया:
(तर्जुमा) हज़रत शैख़ अ’ब्दुल क़ादिर तरीक़त के सुल्तान और तहक़ीक़ की रू से तमाम मौजूदात में तसर्रुफ़ करने वाले थे।आपको ख़ुदा की तरफ़ से फ़े’ल और तसर्रुफ़ औऱ दाएमी ख़ारिक़-ए-आ’दत (करामत) की अल्लाह ने बड़ी ताक़त अ’ता फ़रमाई थी।
शैख़ुल इस्लाम अ’ज़ीज़ुद्दीन इब्न-ए-अ’ब्दुस्सलाम और इमाम इब्न-ए-तैमिया का क़ौल है कि शैख़ की करामात हद्द-ए-तवातुर को पहुंच गई है।
(तारीख़-ए-दा’वत-ओ-अ’ज़ीमत)
शैख अबू सई’द क़ैलवी गुफ़्त:
शैख़ अ’ब्दुल क़ादिर युबरिउल अक्म-ह वल-अब्र-स व-युहयिल-मौता बि-इज़्निल्लाह
(तर्जुमा)शैख़ अबू सई’द क़ैलवी ने फ़रमाया शैख़ अ’ब्दुल क़ादिर मादर-ज़ाद अंधे और मबरुस को अच्छा कर देते हैं और मुर्दे को ज़िंदा फ़रमाते हैं अल्लाह तआ’ला के हुक्म से।
(नफ़्हातुल-उन्स जामी)
हज़रत को शरीअ’त-ए-मुतह्हरा का बड़ा एहतिमाम था।अगर किसी को शरीअ’त के ख़िलाफ़ अ’मल करते हुए देख़ते तो उसके हाल को सल्ब फ़रमा लेते थे।
फ़वाइदुल-फ़वाद (मल्फ़ूज़ात-ए-हज़रत सुल्तानुल-मशाइख़ महबूब-ए-इलाही सय्यिद निज़ामुद्दीन मोहम्मद बुख़ारी देहलवी) में है की एक शख़्स हज़रत ग़ौस-ए-आ’ज़म रज़ी-अल्लाहु अ’न्हु की ख़िदमत में हाज़िर हुआ।ख़ानक़ाह के दरवाज़े पर देख़ा कि एक शख़्स हाथ पाँव टूटा हुआ पड़ा है।उसने हज़रत की ख़िदमत में ये हाल अ’र्ज़ किया।हज़रत ने फ़रमाया वो अब्दालियों में से है।कल दो साथियों के साथ उड़ता हुआ जा रहा था।मेरी ख़ानक़ाह पर ये तीनों पुहंचे तो एक उनमें सीधी तरफ़ और दूसरा उल्टी तरफ़ अज़ राह-ए-अदब हट गया।इसने बे-अदबाना ख़ानक़ाह के ऊपर से गुज़रना चाहा इसलिए गिर गया।
शैख़ उ’मर ने एक मर्तबा हज़रत ग़ौस-ए-पाक से अ’र्ज़ किया कि अगर कोई शख़्स अपने आपको हुज़ूर का मुरीद समझे अगर्चे उसने आप से बै’अत न की हो और आपके दस्त-ए-मुबारक से ख़िर्क़ा न पहना हो तो हम लोग उसे हुज़ूर के ग़ुलामों में शुमार करें या नहीं।फ़रमाया जो कोई अपने को मेरी तरफ़ मंसूब करता है उसे अल्ल्ह तआ’ला क़ुबूल फ़रमाता है औऱ उसके गुनाह मुआ’फ़ कर दिया करता है।वो मेरे मुरीदों में से है।
(तर्जुमा) सफ़ीनतुल-औलिया,दारा शिक़ोह)
बह्जतुल-असरार हज़रत नुरुद्दीन अ’ली बिन यूसुफ़ बिन जरीर बिन मे’ज़ाद बिन फ़ज़्ल शाफ़ई’,लुग़वी,नह्वी मुजाविर-ए-हरमैन-ए-शरीफ़ैन की तस्नीफ़ है।
उसका तर्जुमा फ़ारसी में मोहम्मद हबीबुल्लाह ने अ’हद मोहम्मद शाह(सन 1123 हिज्री) में कश्फ़ुल-असरार के नाम से किया है।
मुतर्जिम फ़रमाते हैं कि हज़रत ग़ौस-ए-आ’ज़म रज़ी-अल्लाहु अ’न्हु के हालात में कोई किताब इस किताब से बेहतर और मुस्तनद नहीं है। उसके रावी बुख़ारी और मुस्लिम की शराइत पर पूरे उतरते हैं।ख़ास ख़ुसूसियत ये है कि मुसन्निफ़ का ज़माना हज़रत ग़ौस-ए-पाक के ज़माने से बहुत क़रीब है और हर रिवायत और रावियों का ज़िक्र ब-क़ैद-ए-सन-ओ-साल किया गया है और एक एक वाक़िआ’ की कई कई सनदें दर्ज-ए-किताब की गई हैं।आख़िर-ए-किताब में उन मशाईख़-ओ-रुवात का हाल दिया है जिनसे रिवायात ली गई हैं।हज़रत ग़ैस-ए-पाक का बहुत मश्हूर क़ौल है और ब-हद्द–ए-तवातुर रिवायत किया गया है’ क़दमी हाज़िहि-अ’ला रक़बति कुल्ली वलीइल्लाह’ ये मेरा क़दम तमाम औलियाअल्लाह की गर्दन पर है।इसके मुतअ’ल्लिक़ साहिब-ए-बह्जतुल-असरार ने बड़ी तफ़्सील से लिखा है कि उस मज्लिस में कौन कौन से मशाईख़ और औलियाअल्लाह और उम्मत हाज़िर थे।और फिर ये क़ौल मुअल्लिफ़ तक किन किन रावियों की रिवायत से किस सन और किस मक़ाम में पहुंचा।
मुअल्लिफ़ फ़रमाते हैं कि मुझसे अबुल-फ़रह अ’ब्दुल-वहाब ने शहर-ए-क़ाहिरा में सन 665 हिज्री में कहा कि मुझे सन 620 हिज्री में शहर-ए-बग़्दाद में शैख़ अबुस्सना महमूद इब्न-ए-अहमद कूर्दी जीलानी ने ख़बर दी और कहा कि मैं ने हज़रत अ’ब्दुल-क़ादिर रज़ी-अल्लाहु अ’न्हु की ज़ियारत की है और शैख़ बक़ा बिन बत्र शैख़ अबू सई’द क़ौलूनी शैख़ अ’दी बिन मुसाफ़िर शैख़ अ’ली बिन हैयती शैख़ अहमद रिफ़ाई’ को देख़ा है।
उसके बा’द रिवायत का दूसरा सिल्सिला और फिर तीसरा सिल्सिला बयान फ़रमा कर फ़रमाते हैं कि उन लोग़ों ने कहा कि हम उस मज्लिस में हाज़िर थे जिसमें हज़रत सय्यिदिना अ’ब्दुल क़ादिर ने फ़रमाया कि मेरा ये क़दम सब औलियाअल्लाह की गर्दन पर है। हमारे अ’लावा उस मज्लिस में बहुत से मशाइख़-ए-इराक़ हाज़िर थे।उसके बा’द उन मशाइख़ के नाम दर्ज किए हैं।
शैख़ हैयती बिन शैख़ बक़ा बत्र,अबू सई’द क़ैलवी,शैख़ मूसा बिन माहन ज़द्नी,शैख़ अबुल-ख़ुबैब अ’ब्दुल क़ादिर सुहरवर्दी,शैख़ अबुल-करम, शैख़ अबुल-अ’ब्बास अहमद अ’ली जुसक़ी सरसरी,शैख़ माजिद कुर्दी,शैख़ अबू हकम इब्राहीम बिन दीनार नहरवानी,शैख़ अबू उ’मर, उ’स्मान बिन मर्ज़ूक़ फ़र्शी,शैख़ मकारिम अकबर,शैख़ मुतिर,शैख़ जागीर,शैख़ ख़लीफ़ा बिन मूसा अकबर,शैख़ सद्क़ा बिन मोहम्मद बग़्दादी,शैख़ यहया बिन मोहम्मद दौरी मुर्तइ’श,शैख़ ज़ियाउद्दीन इब्राहीम बिन अ’ब्दुल्लाह बिन अ’ली जूनी,शैख़ अ’बू अ’ब्दुल्लाह बिन मोहम्मद दर्बानी क़ज़्वीनी,शैख़ अबू उ’मर उ’स्मान बिन मुरूरा बुस्ताई’,शैख़ अलबान मूसली,शैख़ अ’बुल-अ’ब्बास बक़्ली,शैख़ अबुल-अ’ब्बास अहमद अ’ली मग़्रबी,शैख़ अबू अ’ब्दुल्लाह मोहम्मद बिन अहमद मश्हूर ब-ख़ास,शैख़ अबू उ’मर उ’स्मान बिन अहमद इराक़ी मश्हूर ब-शिकूकी(जो रिजालुल-ग़ैब में शुमार किए जाते हैं)शैख़ सुल्तान बिन अहमद मज़ीद,शैख़ अबू बक्र बिन अ’ब्दुल हमीद शपहानी मश्हूर ब-जब्बारी,शैख़ अबुल-अ’ब्बास अहमद बिन उस्ताद,शैख़ अबू मोहम्मद बिन ई’सा,शैख़ मुबारक बिन अ’ली जमीली,शैख़ अबुल-बरकात बिन मा’दान इराक़ी,शैख़ अ’ब्दुल क़ादिर बिन हसन बग़्दादी,शैख़ अबुल-मस्ऊ’द अहमद अबू बकर हज़ीमी अ’त्तारी,शैख़ अबू अ’ब्दुल्लाह मोहम्मद बिन अबुल-मआ’नी बिन क़ाइद अवानी,शैख़ अबुल-क़ासिम उ’मर बिन मस्ऊ’द बज़ाज़,शैख़ शहाबुद्दीन उ’मर बिन मोहम्मद सुहरवर्दी,शैख़ अबुस्सना मोहम्मदद बिन उ’स्मान तुफ़्फ़ाल,शैख़ अबू हफ़्स उ’मर बिन अबू नसर ग़ज़ाली,शैख़ अबू मोहम्मद फ़ारसी सुम्मा बग़्दादी,शैख़ अबू मोहम्मद बिन इद्रीस या’क़ूबी-ओ-शैख़ अबु हफ़्स उ’मर यक्माती,शैख़ इ’बाद बव्वाब,शैख़ मुज़फ़्फ़र जमाल,शैख़ अबू बकर हमामे मश्हूर ब-मुज़्बिन,शैख़ जमील साहिब ख़ुतबा दर उ’क़्क़ा,शैख़ अबू उ’मर-ओ-उ’स्मान,शैख़ अबुल-हसन जुस्क़ी मश्हूर ब-अबू अ’र्जा,शैख़ अबू मोहम्मद अ’ब्दुल हक़ हरीमी,क़ाज़ी अबुल अ’ली मोहम्मद बिन मोहम्मद फ़रार वग़ैरा वग़ैरा रज़ी-अल्लाह तआ’ला अ’न्हुम।इन हज़रात की मौजूदगी में हज़रत शैख़ अ’ब्दुल क़ादिर ग़ौस-ए-आ’ज़म ने दिली तवज्जोह के साथ अज़ राह-ए-सह्व (या’नी सुक्र औऱ बे-ख़ुदी या ग़लबा-ए-हाल में नहीं)फ़रमाया ‘क़दमी हाज़िही अ’ला रक़बति कुल्लि वलीइल्लाह’।पस शैख़ अ’ली हैयती कुर्सी के ज़ीने के पास हाज़ीर हुए और हुज़ूर का क़दम अपनी गर्दन पर रखा।उसके बा’द तमाम हाज़िरीन ने ऐसा ही किया।
उसके बा’द मुसन्निफ़ ने सैंकड़ों नाम मआ’ सन और मक़ाम उन हज़रात के दिए हैं जिन्हों ने मुख़्तलिफ़ औक़ात और मुख़्तलिफ़ शहरों में सवाल करने वालों से इस वाक़िआ’ की शहादत दी।किताब का बड़ा हिस्सा उन वाक़िआ’त और शहादतों के तज़्किरे से भरा हुआ है।
इस मौक़ा’ पर तबर्रुकन उन सब हज़राब के नामों का ज़िक्र किया गया है जो उस वक़्त-ए-ख़ास में हुज़ूर की मज्लिस में हाज़िर थे और उनहोंने अपने सर झुका दिए और क़दम-ए-मुबारक अपने कंधों पर रखा।ये भी रिवायत है कि उस वक़्त रू-ए-ज़मीन पर जितने औलिया-अल्लाह थे सबने सर झुका दिए और अ’लर्रास-वल-ऐ’न कहा।मुसन्निफ़ ने ये रिवायत भी मुख़्तलिफ़ रावियों से बहुत एहतिमाम के साथ नक़्ल की है।
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