हज़रत बंदा नवाज़ गेसू दराज़ - सय्यिद हाशिम अ’ली अख़तर
आपका इस्म-ए-मुबारक सय्यिद मोहम्मद था।अबुल-फ़त्ह कुनिय्यत और अलक़ाब सदरुद्दीन वलीउल-अकबर अस्सादिक़ लेकिन वो हमेशा हज़रत बंदा-नवाज़ गेसू दराज़ के नाम से मशहूर रहे।ख़ुद अपनी ज़िंदगी में उन्हें इसी नाम से मक़्बूलियत थी।
नसब
आपके जद्द-ए-आ’ला अबुल-हसन जुन्दी हिरात से दिल्ली तशरीफ़ लाए थे।दिल्ली में क़याम फ़रमाया। एक जिहाद में शरीक हो कर जाम-ए-शहादत नोश फ़रमाया।हज़रत गेसू दराज़ के वालिद-ए-मोहतरम सय्यिद यूसुफ़ हुसैनी सय्यिद थे।उनका मज़ार शरीफ़ ख़ुलदाबाद (दकन) में है।वो अ’वाम में राजू क़िताल के नाम से मशहूर थे।
विलादत
आपकी विलादत दिल्ली में 4/ रजबुल-मुरज्बब 721 हिज्री मुताबिक़ 30/ जुलाई 1321 ई’स्वी में हुई।इब्तिदाई ता’लीम अपने नाना से पाई और फिर दूसरे असातिज़ा से उ’लूम-ए-दीनी तकमील की।बचपन ही से आपका रुज्हान इ’बादत और तब्लीग़ की तरफ़ था।आठ साल की उ’म्र से ही आप नमाज़ के बहुत पाबंद थे और बारह साल के सिन में तो आप शब-बेदारी फ़रमाने लगे थे।ख़ुद फ़रमाते थे
“दर दवाज़्दहम सालगी ख़्वाब नमी-दानिस्तम कि चे बाशद
तमाम शब मश्ग़ूल मी-बूदम’’
जब मोहम्मद बिन तुग़लक़ ने अपना दारुल-सल्तनत दिल्ली से दौलताबाद मुंतक़िल किया तो हज़रत गेसू दराज़ के वालिदैन भी दौलताबाद चले गए।उस वक़्त आपकी उ’म्र सात साल थी।जब आपका सिन शरीफ़ दस साल का हुआ तो आप साया-ए-पिदरी से महरूम हो गए।
तक़रीबन पाँच साल के बा’द आप अपनी वालिदा, जद्दा हज़रत बी-बी रानी और अपने बड़े भाई हज़रत सय्यिद हुसैन उ’र्फ़ सय्यिद चन्दन के साथ दिल्ली वापस तशरीफ़ लाए और आइन्दा 64 साल तक दिल्ली में ही सुकूनत-पज़ीर रहे।उस वक़्त आप की उ’म्र पूरे पंद्रह साल थी।
हज़रत गेसू दराज़ को शुरूअ’ ही से हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया और उनके रिश्ते से हज़रत नसीरुद्दीन चिराग़ देहलवी (रहि•) से दिली अ’क़ीदत थी।चुनाँचे दिल्ली पहुँचने के बा’द 16 रजब 736 हिज्री को अपने बड़े भाई के साथ हज़रत नसीरुद्दीन चिराग़ देहलवी (रहि•) के दस्त-ए-मुबारक पर बैअ’त की। मुर्शिद की हिदायत के मुताबिक़ इ’बादत-ओ-रियाज़त में तदरीजी तरक़्क़ी की।बातिन को आरास्ता करने के अ’लावा उ’लूम-ए-ज़ाहिरी की ता’लीम का सिलसिला भी जारी रखा और कुछ किताबें मौलाना सय्यिद शरफ़ुद्दीन कैथली, मौलाना ताजुद्दीन बहादुर और मौलाना क़ाज़ी अ’ब्दुल मुक़्तदिर से पढीं।ज़िक्र-ओ-फ़िक्र में ज़्यादा लज़्ज़त मिलने लगी।घर छोड़कर ख़तीर शेर ख़ाँ जहाँपनाह के एक हुज्रे में आ कर मुराक़बा करने लगे और यहाँ दस बरस तक रियाज़त की।हज़रत चिराग़ देहलवी (रहि•) अपने मुरीद की रियाज़त और ख़िदमत-गुज़ारी से बहुत मुतअस्सिर हुए और हज़रत गेसू दराज़ बहुत जल्द उनके अ’ज़ीज़-तरीन मुरीदों में शामिल हो गए।
ख़िलाफ़त
आपका सिन शरीफ़ 36 बरस था कि दिल्ली में वबा फैल गई।हज़रत गेसू दराज़ को ख़ून थूकने का आ’रिज़ा हो गया।मुर्शिद ने उनके लिए दवा, तबीब और तीमार-दार भेजे और जब उनको शिफ़ा हो गई तो उनसे मिलकर बे-हद ख़ुश हुए और अपना कम्बल हज़रत गेसू दराज़ को ओढा कर फ़रमाया-
“जब कोई किसी के लिए मेहनत करता है तो किसी ख़ास मक़्सद से करता है।मैंने भी तुम पर एक ख़ास मक़्सद से मेहनत की थी।अब वक़्त आ गया है तुम लोगों से बैअ’त कर लिया करो।”
हज़रत गेसू दराज़ ने गर्दन झुका ली।आपने तीन दफ़्आ’ दरयाफ़्त फ़रमाया
“तुम ने ये काम क़ुबूल किया’’ ?
और तीनों मर्तबा हज़रत गेसू दराज़ (रहि•) ने जवाब दिया
“मैंने क़ुबूल किया”
18/ रमज़ान 757 हिज्री मुताबिक़ 14 सितंबर 1356 ई’स्वी को हज़रत चिराग़ देहलवी (रहि•) का विसाल हो गया और हज़रत गेसू दराज़ ने अपने पीर-ओ-मुर्शिद की मस्नद-ए-ख़िलाफ़त को रौनक़ बख़्शी और बा-क़ाएदा बैअ’त का सिलसिला शुरूअ’ कर दिया।
सफ़र-ए-दकन
हज़रत गेसू दराज़ अस्सी साल की उ’म्र तक अपने पीर-ओ-मुर्शिद के जांनशीन की हैसियत से दिल्ली में रुश्द-ओ-हिदायत का काम अंजाम देते रहे।जब 801 हिज्री में अमीर-ए-तैमूर ने दिल्ली पर हमला किया तो आप यकुम रबी’उल-अव्वल 801 हिज्री मुताबिक़ 11/ नवंबर 1398 ई’स्वी को दिल्ली से दौलताबाद (दकन)के लिए आ’ज़िम-ए-सफ़र हुए।आपके हमराह आपके और हज़रत नसीरुद्दीन चिराग़ देहलवी (रहि•) के मुरीदों की भी एक कसीर ता’दाद आ’ज़िम-ए-सफ़र हुई।ये क़ाफ़िला मुख़्तलिफ़ मक़ामात से गुज़रता हुआ 803 हिज्री 1400 ई’स्वी को गुल्बर्गा शरीफ़ पहुँचा।वो ज़माना फीरोज़ शाह बहमनी की हुकूमत का था।बादशाह मए अपने अ’याल और तमाम अरकान-ओ-उमरा-ए-दौलत हज़रत के इस्तिक़बाल के लिए शहर के बाहर हाज़िर हुआ।इस तवील मुसाफ़त के दौरान आपने जहाँ भी क़याम फ़रमाया सैकड़ों की ता’दाद में लोग आपकी ख़िदमत में हाज़िर हुए और उनमें से अक्सर आपके मुरीद भी हुए।इस तरह आपके मुरीदीन का हल्क़ा दिल्ली से गुल्बर्गा तक फैल गया।
बहुत मुख़्तसर से अ’र्से में आपको दकन में बे-इंतिहाई मक़्बूलियत हासिल हो गई और आपने चिश्तिया तरीक़ा–ए-सुलूक को फ़रोग़ दिया। सुल्तान फ़ीरोज़ शाह अक्सर आपकी ख़िदमत में हाज़िर होता और सुल्तान का जांनशीन सुल्तान अहमद शाह बहमनी तो बा-क़ाएदा आपका मुरीद हो गया।
ख़ुद-दारी
आपने ज़िंदगी-भर बड़ी से बड़ी ताक़त के आगे भी सर-ए-तस्लीम ख़म नहीं किया।एक दफ़्आ’ सुल्तान फ़ीरोज़ शाह तुग़लक़ ने अपने एक अमीर मोहम्मद जा’फ़र की मारिफ़त आपको पैग़ाम भिजवाया कि आप हमारे दरबार में आएं।हम किसी मुमताज़ मन्सब पर आपको फ़ाइज़ कर देंगे।आपने जवाब में फ़रमायाः मैं फ़क़ीर हूँ।मेरा काम फ़क़त इन्सानों के लिए दुआ’ करना है और दौलत तो मेरे लिए साँप और आग की तरह है।(तारीख़-ए-फ़रिश्ता सफ़हा 319- 320)
आप कभी किसी दरबार में तशरीफ़ नहीं ले गए।जब बादशाह आना चाहता तो एक दिन क़ब्ल इ’त्तिला’ करा दिया करता था।आपको जो कुछ भी मिलता उसे फ़क़ीरों और मिस्कीनों में तक़्सीम फ़रमा देते थे।
मुतअह्हिल ज़िंदगी
हज़रत गेसू दराज़ रहमतुल्लाहि अ’लैह ने हमेशा यही कोशिश की कि उनकी पूरी ज़िंदगी सुन्नत-ए-रसूल सल्लल्लाहु अ’लैहि वसल्लम के मुताबिक़ हो।जब आपकी उ’म्र चालीस साल के क़रीब होई तो वालिदा माजिदा के हुक्म के मुताबिक़ हज़रत सय्यिद हम्द की साहिब- ज़ादी से शादी कर ली।उनके बत्न से दो साहिब-ज़ादे सय्यिद मोहम्मद अकबर हुसैनी और सय्यिद मोहम्मद असग़र हुसैनी, नीज़ तीन साहिब-ज़ादियाँ तवल्लुद हुईं।
ता’लीमात
हज़रत गेसू दराज़ के जांनशीन हज़रत मौलाना शाह सय्यिद हुसैनी ने हज़रत की तसानीफ़ के तआ’र्रुफ़ में आपकी ता’लीमात को इन अल्फ़ाज़ में बयान किया है।
1. खाना शुरूअ’ करे तो बिस्मिल्लाह कहे
2.तलब-ए-रिज़्क़ में ग़मगीन न रहे
3.ज़्यादा सोने के बजाए बेदार रहे।पेट भर कर खाने के बजाए भूका रहे।ख़ुशी-ओ-ग़मी और नर्मी-ओ-सख़्ती का आ’दी हो जाए।
4. दो काम ज़रूरी हैं: तज़किया-ए-नफ़्स-ओ-तवज्जोह-ए-ताम
5.बहुत ज़्यादा ख़ुश-तबई’ या मज़ाक़ करना मकरूह है
6. इ’ल्म का तलब करना फ़र्ज़ है।इ’ल्म के साथ अगर अ’मल न हो तो वो इ’ल्म अ’क़ीम(बाँझ) है।अगर अ’मल के साथ इ’ल्म न हो तो वो अ’मल सक़ीम(बीमार) है
7. आदमी को मियाना-रौ होना चाहिए।न बिल्कुल फटे पुराने और न बहुत आरास्ता-ओ-पैरास्ता।बल्कि औसत दर्जे के कपड़े पहने
8. सोहबत-ए-नेक लाज़िमी और ज़रूरी है।सोहबत-ए-बद से तन्हाई बेहतर है और तन्हाई से नेक सोहबत बेहतर है
9. बद-खु़ल्क़ी बुरी चीज़ है।जिसके अख़्लाक़ बुरे हों वो कभी आराम से नहीं रहता
10. कम-तरीन हुस्न-ए-ख़ुल्क़ ये है कि अगर किसी ने तकलीफ़ पहुंचाई तो बर्दाश्त करे, बदला न ले। कोई ज़्यादती करे तो रहम करे और उसके लिए ख़ुदा से दुआ’ मांगे
विसाल
गुल्बर्गा शरीफ़ में 22 साल तक रुश्द-ओ-हिदायत का सिलसिला जारी रखा।जब उ’म्र शरीफ़ 104 साल की हुई तो फ़ुयूज़-ओ-बरकात का ये सर-चश्मा मालिक-ए-हक़ीक़ी से जा मिला।16/ज़ी-क़ा’दा 825/हिज्री यकुम नवंबर 1422 ई’स्वी में सुब्ह इशराक़ और चाश्त के दरमियान विसाल हुआ।वफ़ात के मौक़ा’ पर उनके ख़लीफ़ा हज़रत शैख़ अबुल- फ़त्ह ने फ़रमाया ‘ईं मुसीबत-ए-दीन अस्त’’। “मख़दूम-ए-दीन-ओ-दुनिया” से साल-ए-वफ़ात बर-आमद होता है।सुल्तान अहमद शाह बहमनी ने गुल्बर्गा शरीफ़ में उनके मज़ार-ए-मुबारक पर निहायत आ’ली-शान गुंबद ता’मीर कराए और उसको तलाई नक़्श-ओ-निगार से आरास्ता किया।दीवारों पर कलाम-ए-पाक की आयतें आब-ए-ज़र से कंदा कराईं।
रुत्बा-ए-बुलंद
सूफ़िया-ए-किराम में क़ुतुबुल-अक़ताब-क़ाते’-ए-बीख़-ए-कुफ्ऱ-ओ-बिदअ’त, मक़्सूद-ए-ख़िल्क़त-ए-आ’लम, मा’दन-ए-इ’श्क़,मस्त-ए-अलस्त,नग़मात-ए-बे-साज़, महबूब-ए-हक़ वग़ैरा अलक़ाब से याद किए जाते हैं।हज़रत गेसू दराज़ (रिह•) के अ’ज़ीमुल-मर्तबत बुज़ुर्ग होने की एक दलील ये भी है कि हज़रत अशरफ़ जहांगीर समनानी (रहि•) जैसे जलीलुल-क़द्र बुज़ुर्ग भी उनकी ख़िदमत में रुहानी इस्तिफ़ादा के लिए हाज़िर हुए।
तसानीफ़
हज़रत गेसू दराज़ कई ज़बानों के आ’लिम थे।अ’रबी, फ़ारसी, हिंदवी, दकनी ज़बानों के अ’लावा उन्होंने संस्कृत का भी मुतालआ’ किया था और उसका नतीजा था कि हिंदू देवमालाई अदब (HINDU MYTHOLOGY) पर आपको उ’बूर हासिल था।
बाबा-ए-उर्दू मौलवी अ’ब्दुल हक़ के अल्फ़ाज़ में हज़रत साहिब-ए-तसानीफ़-ए-कसीरा थे।सियर-ए-मोहम्मदी के मुअल्लिफ़ ने हज़रत की 31 तसानीफ़ का ज़िक्र किया है लेकिन उनमें से शर्ह-ए-आदाबुल-मुरिदीन, मे’राजुल-आ’शिक़ीन, अस्माउल-असरार, जवामेउ’ल-कलिम, तबअ’ हो चुकी हैं।हज़रत के मक्तूबात का एक क़’लमी नुस्ख़ा बंगाल एशियाटिक सुसाइटी में महफ़ूज़ है जिसमें उनके 61 मक्तूबात हैं जिसे उनके ख़लीफ़ा शैख़ अबूल-फ़त्ह अ’लाउद्दीन ने मुरत्तब किया था।तज़्किरों में आपके मल्फ़ूज़ात के चार मज्मूओं’ का ज़िक्र मिलता है।सियर-ए-मोहम्मदी में है कि हज़रत के बड़े साहिब-ज़ादे हज़रत सय्यिद मोहम्मद अकबर ने दो मज्मुए’ मुरत्तब किए थे।हज़रत कभी कभी बे-साख़्ता ग़ज़लें और रुबाइ’याँ भी कह लिया करते थे।उनके जवामेउ’ल-कलिम को उनके पोते सय्यिद यदुल्लाह उ’र्फ़ सय्यिद क़ुबूलुल्लाह ने एक दीवान की शक्ल में मुरत्तब किया था।
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.