Font by Mehr Nastaliq Web
Sufinama

ताजुल-आ’रिफ़ीन मख़दूम शाह मुजीबुल्लाह क़ादरी – हकीम शुऐ’ब फुलवारवी

निज़ाम उल मशायख़

ताजुल-आ’रिफ़ीन मख़दूम शाह मुजीबुल्लाह क़ादरी – हकीम शुऐ’ब फुलवारवी

निज़ाम उल मशायख़

MORE BYनिज़ाम उल मशायख़

    आप ख़ानदान-ए-जा’फ़रिया के बेहतरीन अहफ़ाद से हैं। आपका ख़ानदान सूबा-ए-बिहार के उस मुतबर्रक क़स्बा फुलवारी में (जो अ’ज़ीमाबाद से 6 कोस के फ़ासिला पर जानिब –ए-मग़्रिब वाक़ि’ है) चार-सौ बरस से आबाद है और हमेशा इ’ल्म-ओ-फ़ज़्ल में यगाना-ए-रोज़गार रहा।

    दसवीं सदी हिज्री के इब्तिदा में ताजुल-आ’रिफ़ीन के जद्द-ए-आ’ला हज़रत शाह सा’दुल्लाह जा’फ़री ज़ैनबी ने (जो हज़रत नूरुद्दीन मुल्कबाज़ परान देहलवी के नवासे हज़रत शाह फ़तहुल्लाह जा’फ़री ज़ैनी के बड़े साहिब-ज़ादे थे) बा’द वफ़ात अपने वालिद-ए-माजिद के बा’ज़ ख़ानगी हालात की वजह से तर्क-ए-वतन कर के आपने दिल्ली से पूरब का क़स्द किया। उस क़स्बा का आ’मिल आपके वालिद अ’लैहिर्रहमा के मुरीदों से था।जिस वक़्त आ’मिल ने आपके तर्क-ए-वतन की ख़बर सुनी बहुत दूर दराज़ से इस्तिक़बाल कर के निहायत ए’ज़ाज़-ओ-इकराम के साथ ले आया।

    हज़रत शाह सा’दुल्लाह अ’लैहिर्रहमा कुछ दिन फुलवारी में क़याम-पज़ीर रहे। एक दिन सैर-ओ-शिकार दरिया-ए-पुनपन की तरफ़ (जो फुल्वारी से तीन कोस के फ़ासिला पर दक्खिन की जानिब जा रही है) गए थे। चूँकि वो ज़माना शेर शाह की नई सल्तनत का था इसलिए तमाम मुल्क में ताएफ़ुल-मुलूकी फैली हुई थी।ज़मीन-दारों में बग़ावत की सख़्त ज़हरीली हवा चल रही थी।बाग़ियों ने सरकारी मुलाज़िम समझ कर शहीद कर डाला।हम-राहियों ने लब-ए-दरिया मश्हद ही पर आपको दफ़्न कर दिया।मौज़ा-ए’-मुनव्वरा सालारपूर से पूरब लब-ए-दरिया ये मज़ार सा’द-ओ-शहीद के नाम से मशहूर है।इस वाक़िआ’ के कुछ दिन बा’द शाह सा’दुल्लाह शहीद अ’लैहिर्रहमा के साहिब-ज़ादे हज़रत अमीर अ’ताउल्लाह जा’फ़री ने सहसराम का क़स्द किया।बादशाह का वज़ीर जो अमीर अ’लैहिर्रहमा के क़ुर्बत-मंदों से था आपकी तशरीफ़-आवरी की ख़बर सुनकर ख़ास आ’लिम-ए-अरकान-ए-दौलत को इस्तिक़बाल के लिए भेजा।मुलाक़ात के बा’द अमीर साहिब अ’लैहिर्रहमा ने किसी मन्सब की दरख़्वास्त नही की।वज़ीर ने अमीर साहिब की शराफ़त के साथ वजाहत-ओ-इ’ल्म-ओ-फ़ज़्ल को ग़नीमत जान कर अपनी साहिब-ज़ादी से ब्याह दिया जिनसे दो बेटी मोहम्मद मुज़फ़्फ़र-ओ-मोहम्मद हुसैन और दो बेटियाँ पैदा हूइँ।

    कहते हैं कि शादी के बा’द वज़ीर साहिब ने आपको बजाए-ख़ुद ख़िदमत-ए-वज़ारत पर मामूर किया मगर इसका तहक़ीक़ी सुबूत नहीं है।बा-ईं-हमा किसी मुअ’ज़्ज़ ओ’ह्दा पर मुमताज़ कर दिया।चंदे अमीर साहिब अ’लैहिर्रहमा ख़िदमत-ए-मुफ़व्वज़ा पर हुक्मराँ रहे।आख़िर-ए-उ’म्र में अपने बड़े बेटे अमीर मुज़फ़्फ़र की वफ़ात से दिल-बर्दाशता हो कर नौकरी छोड़ कर बाक़ी मुतअ’ल्लिक़ीन के साथ फुलवारी में चले आए और उसी क़स्बा में इक़ामत इख़्तियार कर के एक मस्जिद संग-ए-सुर्ख़ की (जिसका सामान आगरा से अपने हमराह लाए थे) बनवा कर इ’बादत-ए-ख़ुदा में मश्ग़ूल हो गए।

    अमीर साहिब अ’लैहिर्रहमा के इन्हीं दो साहिब-ज़ादों मोहम्मद मुज़फ़्फ़र-ओ-अहमद हुसैन की मुतअ’द्दिद और कसीरुत्ता’दाद औलाद से उस मुतबर्रक क़स्बा की आबादी एक मुमताज़ पैमाना पर हो गई और सैकड़ों उ’लमा-ओ-फ़ुज़ला उनके मुक़द्दस अस्लाब से ज़ुहूर में आए जो इ’ल्म-ओ- फ़ज़्ल में अपनी आप ही नज़ीर थे।

    हज़रत आफ़्ताब-ए-तरीक़त ताजुल-आ’रिफ़ीन अमीर अ’ताउल्लाह के छोटे बैठे मोहम्मद हुसैन के चौथी पुश्त में पोते हैं।

    सिल्सिला-ए-नसब-ए-जद्दी

    आपका सिलसिला हज़रत ज़ुल-जनाहैन जा’फ़र तय्यार रज़ी-अल्लाहु अ’न्हु तक हसब-ए-ज़ैल वासतों से पहुंचता है जिससे ताजुल-आ’रिफ़ीन की आ’ली-नसबी का पूरा पता चलता है। हज़रत ताजुल-आ’रिफ़ीन मख़दूम शाह मोहम्मद मुजीबुल्लाह अल-क़ादरी बिन शाह ज़ुहूरुल्लाह बिन कबीरुद्दीन बिन रुकनुद्दीन मोहम्मद हुसैन बिन अमीर अ’ताउल्लाह बिन सा’दुल्लाह बिन फ़तहुल्लाह बिन मुहिब्बुल्लाह बिन मोहम्मद बिन अमीन बिन इब्राहीम बिन उ’म्र दराज़ बिन उ’बैद बिन हमीद बिन इस्माई’ल बिन मोहम्मद रर्ईस बिन अ’ली अज़्ज़ैनबी बिन अ’ब्दुल्लाह अल-जव्वाद बिन जा’फ़र तय्यार रज़ी-अल्लाहु अ’न्हुम अज्मईन।

    हज़रत ताजुल-आ’रिफ़ीन को सिर्फ़ आबाई हैसिय्यत से ही अपनी आ’ली नसबी में इम्तियाज़ हासिल था बल्कि मादरी नसब की तरफ़ से भी आपको हुसैनी सय्यिद होने का फ़ख़्र हासिल था।शाह मुजीबुल्लाह बिन बी-बी ख़दीजा बिंत-ए-सय्यिद बुर्हानुद्दीन ख़िज़्र पुरी बिन सय्यिद ज़ैनुल-आ’बिदीन बिन सय्यिद अ’ब्दुलअ’ज़ीज़ बिन सय्यिद क़ुतुबुद्दीन उ’र्फ़ सय्यिद भीख बिन सय्यिद आलिह दाद बिन मोहम्मद इस्हाक़ बिन मोहम्मद यूसुफ़ बिन मोहम्मद ख़्वाजा बिन सय्यिद नसीरुद्दीन बिन हुसामुद्दीन बिन इब्राहीम अबुल-हसन बिन अ’ब्बास फ़ानी, बिन सय्यिद हसन बिन हम्ज़ा बिन अहमद हुसैन अबुल-हसन अ’ब्बास बिन सय्यिद अ’ली बिन सय्यिद हुसैन अबुल-हसन बिन सय्यिद अ’ली बिन सय्यिद मोहम्मद बिन सय्यिद अ’ली अकबर बिन हज़रत इमाम जा’फ़र सादिक़ अ’लैहिस्सलाम बिन इमाम मोहम्मद बाक़र अ’लैहिस्सलाम बिन इमाम ज़ैनुल-आ’बिदीन रज़ी-अल्लाहु अ’न्हुम।

    सन1098 हिज्री में ताजुल-आ’रिफ़ीन ने अपने मुबारक क़दम से रू-ए-ज़मीन को मुनव्वर फ़रमाया।तज़्किरतुलकिराम में लिखा है कि आपकी विलादत से दो-चार साअ’त पहले ताजुल-आ’रिफ़ीन के वालिद हज़रत शाह ज़ुहूरुल्लाह रहमतुल्लाहि अ’लैह ने ख़्वाब देखा था कि एक मुनव्वर और चमकता आफ़्ताब मेरे मकान में तुलूअ’ हुआ है जिसकी ता’बीर शाह ज़ुहूरुल्लाह अ’लैहिर्रहमा के पीर हज़रत शाह बुर्हानुद्दीन क़ादरी फुलवारवी अ’लैहिर्रहमा ने ताजुल-आ’रीफ़ीन की मुफ़ीद विलादत से की।

    आपकी बा-सआ’दत विलादत के चंद ही माह-ओ-साल के बा’द आपके वालिदैन आपके नन्हे और मुक़द्दस दिलपर दाग़-ए-यतीमी लगा कर राही-ए-मुल्क-ए-बक़ा हुए।अफ़्सोस मशिय्यत-ए-एज़दी की वजह से आपकी परवरिश का हक़ अदा कर सके।अगर्चे ये सदमा ताजुल-आ’रिफ़ीन के लिए बहुत ही अ’ज़ीम था मगर फूफी-ज़ाद बड़े भाई का साया-ए-आ’तिफ़त वालिदैन की ज़िल्ल-गुस्तरी से कम था।आपने अपने हक़ीक़ी फूफी-ज़ाद भाई महबूब-ए-रब्बुल-आ’लमीन ख़्वाजा इ’मादुद्दीन क़लंदर फुलवारवी के कनार-ए-आ’तिफ़त में परवरिश पाई।

    जब ज़ी-शुऊ’र हुए तो ज़ौक़-ए-तहसील-ए-उ’लूम दिल में जा-गुज़ीं हुआ और इब्तिदा की मुख़्तसरात हज़रत ख़्वाजा से तमाम कीं लेकिन मुतव्वलात की तहसील का मौक़ा’ हज़रत ख़्वाजा से इसलिए मिल सका कि अक्सर हज़रत ख़्वाजा अपने कसरत-ए-मशाग़िल औराद-ओ-अज़कार के सबब से अ’दीमुल-फ़ुर्सत रहा करते थे।इसलिए ताजुल-आ’रिफ़ीन को तकमील-ए-उ’लूम-ए-ज़ाहिरी की ग़रज़ से सफ़र का क़स्द हुआ।

    उस वक़्त आपके हम-उ’म्रों और क़राबत-मंदों में से एक बुज़ुर्ग हज़रत शाह मोहम्मद मख़्दूम क़ादरी जा’फ़री ज़ैनबी फुलवारवी ने जो बनारस में हज़रत मौलाना शाह मोहम्मद वारिस ग़ाज़ी पुरी सुम्मा अल-बनारसी क़ादिरी की ख़िदमत-ए-बा-बरकत में ब-ग़रज़-ए-तहसील-ए-उ’लूम-ए-ज़ाहिरी-ओ-बातिनी हाज़िर रहा करते थे ताजुल-आ’रिफ़ीन से मौलाना के महामिद-ओ-फ़ज़ाइल बयान फ़रमाए।ताजुल-आ’रिफ़ीन को मौलाना के शरफ़-ए-ज़ियारत का अज़-हद शौक़ पैदा हुआ और रह-रह कर ये बेचैन करने वाला शौक़ आपके मुक़द्दस दिल में पैदा होता रहा। यहाँ तक कि बनारस के दूर-दराज़ सफ़र की दुश्वार-गुज़ार मशक़्क़त बर्दाश्त करने के लिए हज़रत ख़्वाजा से ब-इसरार इजाज़त लेने पर मजबूर हुए।हज़रत ख़्वाजा को इस वजह से कि ताजुल-आ’रिफ़ीन को जान से ज़्यादा अ’ज़ीज़ रखते थे और बजाए-बेटे के समझते थे एक दिन की मुफ़ारक़त गवारा थी मगर हज़रत ख़्वाजा की शफ़क़त ये भी पसंद नहीं करती थी कि ताजुल-आ’रिफीन तहसील-ए-उ’लूम-ए-ज़ाहिरी से महरूम रहें। दिल पर जब्र कर के बनारस मौलाना की ख़िदमत में रुख़्सत फ़रमाया।

    ताजुलआ’रिफ़ीन मौलाना की शरफ़-ए-ज़ियारत से मुशर्रफ़ हुए और निहायत जाँ-फ़िशानी के साथ उ’लूम-ए-मुतदावला की तहसील की तरफ़ मशग़ूल हो गए।मौलाना ताजुल-आ’रिफ़ीन की जौदत-ए- तब्अ’-ओ-ज़ेहन-रसा देखकर बहुत ज़्यादा नज़र-ए-शफ़क़त फ़रमाने लगे और तमाम-तर मौलाना की पाक हिम्मत ताजुलआ’रिफ़ीन की ता’लीम-ओ-तर्बियत की तरफ़ मसरूफ़ हो गई।निहायत क़लील मुद्दत में आपने तमामी उ’लूम-ए-मुतदावला से फ़राग़त हासिल की।

    जब ताजुल-आ’रिफ़ीन उ’लूम-ए-ज़ाहिरी की तहसील से फ़राग़त पा चुके तो हुसूल-ए-इ’ल्म-ए-बातिनी का शौक़ पैदा हुआ। अगर्चे हज़रत मौलाना की बुजु़र्गी और सिफ़ात-ए-मलकी-ओ-मदारिज-ए-आ’लिया का इक़रार ताजुल-आ’रिफ़ीन के नूरानी दिल ने अव्वल ही मुलाक़ात में कर लिया था और मौलाना की पाक मोहब्बत का तुख़्म जिसको ताजुल-आ’रिफ़ीन के पुर असरार दिल में सानिअ’-ए-क़ुदरत ने अज़ल ही में बोया था पौदे की सूरत में पहले ही नुमायाँ हो चुका था।और असना-ए-तहसील में ताजुल-आ’रिफ़ीन ने तरीक़त की तरफ़ (हज़रत ख़्वाजा की इस्तिर्ज़ा के मुताबिक़ जिसका वाक़िआ’ ज़ैल में दर्ज करूँगा)हज़रत मौलाना से रुजूअ’ भी किया था मगर तमाम-तर आपकी हिम्मत ब-वजह-ए-तहसील-ए-उ’लूम-ए-ज़ाहिरी के उधर मुनअ’तिफ़ थी।फ़राग़ हासिल करने के बा’द हमा-तन रियाज़ात-ओ-मुजाहदात-ए-नफ़्स में मसरूफ़ हो गए तज़्किरतुल-किराम में ताजुल-आ’रिफ़ीन की तक़्लील-ए-ग़िज़ा और रियाज़त-ए-नफ़्स के बारे में लिखा है कि हर-रोज़ हज़रत मौलाना के मतबख़ में कमी-ए-फ़ुतूहात की वजह से बा-वजूद-ए-कसरत-ए-तलबा और मुसाफ़िरीन के सिर्फ़ एक सेर आवर गंदुम में साठ रोटियाँ पकती थीं जिनमें से तीन नान हर शख़्स को मिला करती थीं।ताजुल-आ’रिफ़ीन एक सक़्क़ा-ए-ख़ान-क़ाह को दूसरी ख़ाकरूब को देकर तीसरी ख़ुद तनावुल फ़रमाया करते और अक्सर शब ऐसे भी गुज़र जाती थी कि वो कुल रोटियाँ बच रहीं और सुब्ह को बाँट दी गईं। और ताजुल-आ’रिफ़ीन ने तमाम शब उसमें से एक टुकड़ा भी खाया।

    तहसील-ए-उ’लूम के ज़माना में शब-बेदारी के लिए ताजुल-आ’रिफ़ीन का ये मा’मूल था कि अपनी निशस्तगाह में कंकरियाँ बिछा दिया करते थे।उसी ज़माना में आपके सर-ए-मुबारक में बड़े बड़े बाल थे जिनको मज़बूत रस्सी से बांध कर छत से लिटा दिया करते थे ताकि उन तकलीफों से आँख पर ग़ुनूदगी तारी हो

    यूँ तो हर मुसलमान के दिल में हज़रत रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अ’लैहि वसल्लम की मोहब्बत शर्त-ए-कमाल-ए-ईमान की अ’लामत है मगर ताजुल-आ’रिफ़ीन की ये मोहब्बत इ’श्क़ के दर्जा तक पहुंची हुई थी।दिल आपका हर लहज़ा दीदार-ए- जमाल से मुशर्रफ़ होने की तमन्ना में मुज़्तरिब रहता था। चुनांचे चंद-बार ब-ज़रिआ’ इस्तिख़ारा के इस दौलत-ए-बे-बदल से फ़ाइज़ुल-मराम भी हो चुके थे।

    इस वक़्त तक ताजुल-आ’रिफ़ीन को इसकी ख़बर थी कि इस मुअज़्ज़ज़ और क़ीमती ख़िदमत पर हमारे हज़रत के दरबार में और ये दौलत-ए-अबदी मौलाना ही के कब्ज़ा-ए-तसर्रुफ़ में है।

    ‘आब दर कूज़ः-ओ-मन तिश्नः-दहाँ मी-गर्दम’

    और ऐ’न दर्स के बर-सबील-ए-तज़्किरा जमाल-ए-जहाँ आरा-ए-नबवी सल्लल्लाहु अ’लैहि वसल्लम से मुशर्रफ़ हो कर आया। ताजुल-आ’रिफ़ीन ने अ’र्ज़ किया कि मुझको भी इस सआ’दत-ए-अज़ली के हुसूल की इस क़दर तमन्ना है कि इहाता-ए-तक़रीर से बाहर है।चुनांचे इस्तिख़ारा के ज़रिआ’ से दो तीन बार फ़ाइज़ालुल-मराम भी हो चुका हूँ।मौलाना ने फ़रमाया कि ख़्वाब के ज़रिआ’ से उस बारगाह-ए-आ’लम-पनाह की बारयाबी इसके क्या मा’नी हैं।ब-चश्म-ए-सर बेदारी की हालत में बिजद्दिहि सल्लल्लाहु अ’लैहि वसल्लम इन्सान मुशर्रफ़ हो सकता है और वह-ए-आफ़्ताब-ए-बुर्ज-ए-नबूवत उस जिस्म से ज़िंदा तुलूअ’ हो सकता है क्योंकि अरबाब-ए-तहक़ीक़ के नज़दीक रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अ’लैहि वसल्लम का ज़िंदा रहना मुहक़्क़क़ है।

    ताजुल-आ’रिफ़ीन को मौलाना की इस हैरत-अंगेज़ गुफ़्तुगू पर सख़्त तअ’ज्जुब हुआ।अ’र्ज़ किया कि इस ज़माने में भी ये अम्र मुमकिन है?अगलों ही के लिए ये बात मख़्सूस थी। मौलाना ने फ़रमाया हाँ साहिब मुमकिन है।

    ‘हनूज़ आँ अब्र-ए-रहमत दुर्र-फ़िशाँ अस्त’

    अगर तुम चाहते हो तो इस ज़माना में भी दौलत-ए-बे-बदल से बारयाब हो सकते हो।ताजुल-आ’रिफ़ीन को ये मुज़्दा-ए-जाँ-बख़्श सुन कर बहुत मसर्रत हुई और कहा।

    ‘वल्लाह जिसे ढूँढी उन्हें पा गई आँखें’

    और आतिश-ए-इ’श्क़-ए-नबवी सल्लल्लाहु अ’लैहि वसल्लम जो एक छुपी आग की तरह दिल ही दिल में मुश्तइ’ल हो रही थी यका-य़क भड़क उट्ठी और बे-इख़्तियार दिल चाहा कि उस नेअ’मत-ए-ग़ैर मुतरक़्क़बा के हुसूल के लिए मौलाना के हलक़ा-ए-इरादत में दाख़िल हो जाऊँ लेकिन हज़रत ख़्वाजा के इस्तिहफ़ाज़-ए-हुक़ूक़-ए-बंदगी के सबब से किसी दीनी-ओ-दुनियावी काम में बिला रज़ा-मंदी-ए-हज़रत जुरअत फ़रमाते थे।उसी वक़्त एक अ’रीज़ा ज़ैल के मज़मून का लिलख कर रवाना फ़रमाया।

    “उस्ताज़ी हज़रत मौलाना-ओ-सय्यिद मोहम्मद वारिस दामत बरकततुहु-व-इ’नायातुहु रोज़े दर ज़िक्र-ए-मुशर्रफ़-ए-शुदन अज़ जमाल-ए-जहाँ आरा-ए-रसूलुल्लाहिसल्लल्लाहु अ’लैहि वसल्लम अज़ फ़क़ीर चुना इर्शाद फरमूदंद कि हर कस अज़ चश्म-ए-सर मुशाहदः-ए-जमाल-ए-जहान-आरा-ए-नबवी कर्दन मी-तवानद-ओ-हनूज़ आँ अब्र-ए-रहमत दुर्र-फ़शानस्त।अगर शुमा हम ख़्वाहेद मुम्किन अस्त-ओ-मयस्सर शुदन मी-तवानद अम्र-ए-मुहाल नीस्त चूँ ग़ुलाम रा दर-बाब-ए-फ़क़्र दख़्ले नीस्त कि अज़ाँ फ़रक़े दर्मियान-ए-हक़-ओ-बातिल-ओ-सिद्क़-ओ-किज़्ब तवानद कर्द।हर-चंद तमन्ना-ए-इं मा’नी-ओ-सौदा-ए-ईं कार अज़-हद ज़्यादा अस्त लेकिन बे-इस्तिर्ज़ा-ए-हुज़ूर-ए-आ’ली-ओ-दर्याफ़्त-ए-हाल-ए-हज़रत-ए-उस्ताज़ी जुरअ’त ब-रुजुअ’ आवर्दन न-याफ़्त दरीं बाब हर चे मुलाज़िमान-ए-हुज़ूर-इमाए-फ़र्मायंद ब-अ’मल आवर्द: शवद”

    हज़रत ख़्वाजा ने ताजुल-आ’रिफ़ीन का अ’रीज़ा मुलाहज़ा फ़रमाने के बा’द फ़ौरन उसके जवाब में तहरीर फ़रमाया

    ‘अ’रीज़ा-ए-ईशाँ दिल रा मसरूर फ़र्मूद।हस्ब-ए-दर्ख़ास्त-ए-ईशाँ क़ासिद दर्याफ़्त-ए-हाल-ए-मोलवी ईं फ़क़ीर शुदः बूद। नज़द-ए-फ़क़ीर आँस्त कि हर क़दम कि ऊशाँ गुफ़्तः अंद-ओ-मुद्दई’ अंद रश्हःइ इस्त अज़ दरिया-ए-कमाल-ए-शाँ-ओ-क़तरा इस्त अज़ सहाब-ए-दुर्र-फ़शां।नाइब-ए-ख़ास-ए-रसूल-ए-ख़ूदा अस्त-ओ-हम रसूल नुमा।सादिक़ दर अक़्वाल-ए-ख़ुद-ओ-यक्ता-ए-ज़मानः दर अहवाल-ए-ख़ुद ब-रु-ए-ज़मीन अज़ क़ाफ़ ता क़ाफ़ शर्क़न-ओ-ग़र्बन-ओ-जुनूबन-ओ-शिमालन नज़ीर-ए-ख़ुद न-दारंद।अख़ज़-ए-तरीक़ बे-तअ’म्मुल बायद कर्द।फ़र्ज़िंद आँ कि ब-क़ूव्वत-ए-बाज़ू-ए-ख़ुद बे दौलते ब-दस्त आवर्दे वर्ना मीरास-ए-पिदरी बर-कसे रा मयस्सर अस्त हर वक़्ते-कि ख़्वाहंद ब-गीरंद तलबे ए’तबारे दारद”

    ताजुल-आ’रिफ़ीन ने हज़रत ख़्वाजा का मकतूब मुतालिआ’ करने के बा’द हज़रत मौलाना की ख़िदमत-ए-बा-बरकत में हाज़िर हो कर हज़रत ख़्वाजा का मकतूब पेश कर दिया। मौलाना ने फ़रमाया साहिब महबूब-ए-रब्बुल-आ’लमीन हैं जो कुछ फ़रमाएं बजा है।मुख़्तसर ये कि हज़रत ताजुल-आ’रिफ़ीन ने हसब-ए-रज़ा हज़रत ख़्वाजा के तरीक़ा-ए-उवैसिया वारसिया के हुसूल की तरफ़ रुजूअ’ फ़रमाया।मौलाना ने अव्वल तो ताजुल-आ’रिफ़ीन जैसे तरीक़त की तरफ़ मुनासिब क़ल्ब-वाला मुस्तर्शिद पाया दूसरे हज़रत ख़्वाजा की ताकीद।ताजुल-आ’रिफ़ीन पर हुसूल-ए-तरीक़त की तरफ़ मुलाहज़ा फ़रमा कर बहुत ज़्यादा तर्बियत की तरफ़ अपनी पाक हिम्मत मब्ज़ूल फ़रमाई।यहाँ तक कि कुल सात बरस की मुद्दत में ताजुल-आ’रिफ़ीन की सई’-ए-जमीला-ओ-मौलाना की बातिनी तवज्जोह ने आपको तरक़्क़ी के आ’ला मदारिज पर पहुंचा दिया और बहुत कम-उ’म्री में सैर-ए-मक़ामात से फ़राग़त हासिल फ़रमाई। गोया तमाम उ’लूम-ए-ज़ाहिरी-ओ-बातिनी की तकमील अपनी उ’म्र शरीफ़ के चौबीसवीं ही साल में कर ली।उसके बा’द मौलाना ने अपनी तरफ़ से सिलसिला-ए-क़ादरिया वारसिया का मजाज़ मअ’ अज़्कार-ओ-अश्ग़ाल-ओ-ख़िर्क़ा-ए-ख़िलाफ़त के बनाकर वतन की तरफ़ रुख़्सत कर के इर्शाद-ओ-हिदायत-ए-ख़ल्क़ के लिए मामूर फ़रमाया।

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi

    Get Tickets
    बोलिए