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ज़िक्र-ए-ख़ैर : हज़रत मख़दूम अहमद चर्म-पोश

रय्यान अबुलउलाई

ज़िक्र-ए-ख़ैर : हज़रत मख़दूम अहमद चर्म-पोश

रय्यान अबुलउलाई

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    मख़दूम अहमद चर्म-पोश बिहार शरीफ़ की शान और गरिमा, भारत के इतिहास का एक सुनहरा अध्याय है। चाहे वह हिंदू हों या मुस्लिम, बौद्ध धर्म के अनुयायी हों या जैन मतावलंबी सभी इस स्थान की महानता को स्वीकार करते हैं।

    सिलसिला-ए-चिश्तिया के साथ-साथ सिलसिला-ए-सुहरवर्दिया का प्रचार और प्रसार भी ख़ानवादा-ए-ताज फ़क़ीह के बाद बिहार प्रांत में बड़ी तेजी से हुआ। हज़रत पीर जग-जोत और हज़रत शैख़ कमालुद्दीन यहया मनेरी के बाद, मख़दूम अहमद चर्म-पोश सुहरवर्दी बुज़ुर्गों में बहुत मशहूर हुए। बिहार शरीफ़ के अम्बेर में उनकी ख़ानक़ाह, रूहानी तरक़्क़ी और ख़ास तौर पर सिलसिला-ए-सुहरवर्दिया की बरकतों का एक उज्जवल केंद्र बन गई।

    सूफ़ियों की तरह, उस समय के सुल्तान जैसे फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ भी उनकी ख़ानक़ाह में अकीदत-मंदाना हाज़िरी दिया करते थे। वे एक विद्वान, शाइर और सूफ़ियाना मिज़ाज के मालिक थे। उनके चेहरे-मोहरे में ख़ूबसूरती और आकर्षण था, जो लोगों को बहुत प्रभावित करता था। उनकी शख़्सियत में रौब और रूहानियत का अजीब मेल था, जिसकी झलक आज भी उनकी दरगाह पर देखने को मिलती है।

    जाने हर रोज़ कितने ही लोग अपनी मनोकामनाएँ पूरी करके वहाँ से लौटते हैं। और यह भी एक ख़ास बात है कि वहाँ आने वालों में धर्म और जाति का कोई भेदभाव नहीं होता हर कोई एक जैसी श्रद्धा और भावना से हाज़िर होता है, जो एक अलग ही मंज़र पेश करता है।

    मख़दूम अहमद चर्म-पोश की जन्म-तारीख़ पक्के तौर पर मालूम नहीं है, लेकिन प्रामाणिक तौर पर 657 हिजरी / 1259 ईस्वी को आपका जन्म माना जाता है।

    आपके जन्म-स्थान को लेकर मतभेद पाया जाता है। कुछ के अनुसार आप हमदान (ईरान) में पैदा हुए, जबकि कुछ विद्वानों के अनुसार आपका जन्म जेठली (सबलपुर, पटना) में हुआ। यह बात कि नौ वर्ष की आयु में घटा एक प्रसिद्ध वाक़या जेठली में ही पेश आया और यह कि आपने अपने नाना हज़रत पीर जग-जोत की गोद में अपनी ज़िंदगी के पहले नौ साल उनकी ज़ाहिरी हयात तक गुज़ारे इस बात की तस्दीक़ करती है कि आपका असल जन्मस्थान जेठली ही है। नाना के विसाल के बाद आप ने हमदान (ईरान) की तरफ़ रुख़ किया।

    आपके पिता का नाम सुलतान सय्यद मूसा हमदानी था, जो हमदान के शरीफ़ और हुक्मरान तबक़े से ताल्लुक़ रखते थे। बाद में दुनिया की ऐश-ओ-इशरत और हुकूमत की ज़िंदगी छोड़ कर, आपने रूहानियत की राह अपनाई और अपने सुसर की सोहबत इख़्तियार की।

    आपकी माँ बीबी हबीबा थीं, जो मशहूर सूफ़ी हज़रत पीर जग-जोत की दूसरी बेटी थीं और अम्बेर (बिहार शरीफ़) में दफ़्न हैं।

    आपके दो भाई सय्यद मोहम्मद और सय्यद महमूद हमदान (ईरान) में आराम फरमा हैं।

    नस्लन, आप दोनों तरफ़ से सय्यद हैं: पिता की ओर से आप सादात-ए-काज़मी (इमाम मूसा काज़िम) से हैं, और माँ की ओर से आप सादात-ए-जा’फ़री (सय्यद मोहम्मद इस्माईल बिन इमाम जा’फ़र सादिक़) से ताल्लुक़ रखते हैं।

    इस तरह, आप नज़ीब-उत-तरफ़ैन सय्यद यानी दोनों ओर से पाक और रूहानी नस्ल के वारिस थे।

    जहाँ-जहाँ इस बरकत वाली नस्ल के बुज़ुर्ग दफ़्न हैं, वहाँ आज भी रूहानियत और फ़ैज़ का सिलसिला जारी है। ये मक़ामात लोगों की रुहानी प्यास बुझाते हैं और हिदायत की रौशनी बिखेरते हैं

    शाह अता हुसैन फ़ानी दानापुरी अपनी किताब कन्ज़ुल-अन्साब में आपका वंशावली ऐसे लिखते हैं।

    मख़दूम अहमद चर्म-पोश बिन

    सय्यद मूसा बिन

    सय्यद मुबारक बिन

    सय्यद ख़िज़्र बिन

    सय्यद इब्राहीम बिन

    सय्यद इस्माईल बिन

    सय्यद सुलैमान बिन

    सय्यद अब्दुल करीम बिन

    सय्यद अब्दुश शकूर बिन

    सय्यद नेअमतुल्लाह बिन

    सय्यद अब्दुल मजीद बिन

    सय्यद अब्दुर्रहीम बिन

    सय्यद इसहाक़ बिन

    सय्यद अहमद बिन

    सय्यद महमूद बिन

    सय्यद इस्माईल बिन

    सय्यद अब्दुर्रहमान बिन

    सय्यद क़ासिम बिन

    सय्यद नूर बिन

    सय्यद यूसुफ़ बिन

    सय्यद रुकनुद्दीन बिन

    सय्यद अलाउद्दीन बिन

    सय्यद यहया बिन

    सय्यद ज़करीया बिन

    सय्यद क़ुरैशी बिन

    सय्यद उमर बिन

    सय्यद अब्दुल्लाह बिन

    इमाम मूसा काज़िम बिन

    इमाम जा’फ़र सादिक़ बिन

    इमाम बाक़िर बिन

    इमाम ज़ैनुल आबिदीन बिन

    इमाम हुसैन बिन

    इमाम अली मुर्तज़ा

    शाह ग़फ़ूरुर्रहमान हम्द काकवी की किताब आसार-ए-काको आपकी माँ का वंशावली इस तरह लिखा है।

    मख़दूम अहमद चर्म-पोश बिन

    सय्यदा हबीबा बिन्त

    सय्यद शहाबुद्दीन पीर जग-जोत बिन

    सय्यद ताजुद्दीन बिन

    सय्यद अहमद बिन

    सय्यद नासिरुद्दीन बिन

    सय्यद यूसुफ़ बिन

    सय्यद हसन बिन

    सय्यद क़ासिम बिन

    सय्यद मूसा बिन

    सय्यद हम्ज़ा बिन

    सय्यद दाऊद बिन

    सय्यद रुकनुद्दीन बिन

    सय्यद क़ुतुबुद्दीन बिन

    सय्यद इसहाक़ बिन

    सय्यद इस्माईल बिन

    इमाम जा’फ़र सादिक़ बिन

    इमाम बाक़िर बिन

    इमाम ज़ैनुल आबिदीन बिन

    इमाम हुसैन बिन

    इमाम अली मुर्तज़ा

    आपने अपने नाना हज़रत पीर जग-जोत की मुहब्बत भरी गोद में अपनी प्रारंभिक शिक्षा और तरबियत हासिल की। उसके बाद उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए आप अपनी ख़ाला हज़रत मख़दूमा बीबी कमाल (काको) के नवासे मख़दूम शाह ग़रीब हुसैन मह्सवी के साथ रवाना हुए।

    आप दोनों ने शैख़ सुलैमान सुहरवर्दी मह्सवी की ख़िदमत में हाज़िर होकर इल्म की रौशनी से फ़ैज़ हासिल किया। वे सिर्फ़ ज़ाहिरी इल्म के जानकार थे बल्कि रूहानी ज्ञान में भी माहिर थे। वह शैख़ तक़ीउद्दीन सुहरवर्दी मह्सवी के ख़लीफ़ा, मुरीद और शागिर्द में से थे।

    मख़दूम चर्म-पोश ने वहाँ आंतरिक और बाहरी दोनों तरह की तालीम मुकम्मल की। बहुत जल्द आप ज़माने के यकता आलिम बन गए।

    धीरे-धीरे लोग आपकी तालीम से नफ़्स की पाकी और दिल की सफ़ाई सीखने लगे। आप ने तसव्वुफ़ के राज़-ओ-असरार, मुहब्बत और इंसानियत का दर्स बड़े अन्दाज़ में देना शुरू किया। आप लोगों को विनम्रता के साथ सही इंसान बनने की तरबियत देते रहे।

    मख़दूम अहमद चर्म-पोश को बचपन से ही सिलसिला-ए-सुहरवर्दिया से गहरी अकीदत थी, क्योंकि आपके नाना हज़रत पीर जग-जोत भी इसी सिलसिले के मशहूर बुज़ुर्गों में थे।

    आपने बैअ’त और ख़िलाफ़त प्राप्त की शैख़ सुलैमान मह्सवी के ख़लीफ़ा शैख़ अलाउउद्दीन अला-उल-हक़ सुहरवर्दी से।

    किताब आसार-ए-शरफ़ के अनुसार, आपका वंश इमाम अली रज़ा तक पहुँचता है और आपकी बैअ’त की सिलसिला इस प्रकार है:

    मख़दूम अहमद चर्म-पोश ने तरीक़त हासिल की शैख़ अलाउद्दीन अला-उल-हक़ सुहरवर्दी से जो शैख़ सुलैमान मह्सवी के मुरीद थे और वो शैख़ तक़ीउद्दीन सुहरवर्दी के मुरीद थे और वो शाह दिमिश्क़ी के मुरीद थे और वह शैख़-उश-शुयूख़ शहाबुद्दीन सुहरवर्दी के मुरीद थे।

    इस तरह मख़दूम चर्म-पोश को सिलसिला-ए-सुहरवर्दिया की इजाज़त और ख़िलाफ़त इस मुक़द्दस रूहानी ज़ंजीर के ज़रिये मिली।

    बिहार में सुफ़िस्म का प्रसार:

    हज़रत पीर जग-जोत के बाद इसी सिलसिले की तालीमात और रूहानी फ़ैज़ की तशहीर तरवीज का सबसे ज़्यादा काम मख़दूम अहमद चर्म-पोश के हाथों हुआ। बिहार और उसके आस-पास के इलाक़ों में इस सिलसिले की रोशनी आपने फैलाई।

    यह सिलसिला आगे चलकर ख़ानक़ाह-ए-सज्जादिया अबुलउलाईया, दानापुर में भी पहुँचा और वहां इसकी इजाज़त-व-ख़िलाफ़त कई माध्यमों से जारी रही।

    आप के मुरीद और संतान:

    आपके मुरीदों और चाहने वालों में बड़े नाम शामिल हैं:

    हज़रत शम्स बल्ख़ी (मदफ़न: दरगाह अंबेर शरीफ़)

    हज़रत हसन प्यारे

    हज़रत शैख़ अलाउद्दीन अली बिन इब्राहीम अल-सूफ़ी

    आपके संतान में:

    हज़रत सय्यद सिराजुद्दीन अहमद

    हज़रत सय्यद ताजुद्दीन अहमद (मदफ़न: दरगाह अंबेर शरीफ़)

    मूनिसुल-क़ुलूब (91वीं मज्लिस) में है की:

    शैख़ अहमद चर्म-पोश और शैख़ हुसैन मह्सवी, दोनों बुज़ुर्ग शैख़ सुलैमान मह्सवी की ख़िदमत में हाज़िर हुए। उस वक़्त दोनों के पास तन ढकने के लिए कोई कपड़ा नहीं था। शैख़ सुलैमान ने इन दोनों को आठ चीतल (उस ज़माने की मुद्रा) दिए और फ़रमाया:

    “इस रक़म से अपने लिए सतर-पोशी (शरीअत के मुताबिक़ तन ढकने) का इंतज़ाम कर लो।”

    दोनों बुज़ुर्ग जब बाहर आए तो आपस में मशविरा करने लगे कि इतनी थोड़ी रकम में दोनों के लिए कपड़ा नहीं बन सकता।

    इसलिए: शैख़ हुसैन मह्सवी ने मोटा कपड़ा (धक्कड़) ख़रीद लिया और शैख़ अहमद ने चमड़ा ले लिया, जब दोनों वापस शैख़ सुलैमान की ख़िदमत में हाज़िर हुए एक ने धक्कड़ पहन रखा था, दूसरे ने चमड़ा तो शैख़ सुलैमान मुस्कुराए और फ़रमाया: “मुबारक हो! यही तुम्हारे लिए काफ़ी है।” और उसी दिन से शैख़ अहमद को चर्म-पोश (चमड़ा पहनने वाला) के नाम से याद किया जाने लगा।

    अक्सर इतिहासकारों की राय है कि मख़दूम अहमद चर्म-पोश की प्रकृति बादशाहत से अलग होकर पूरी तरह लिल्लाहियत की ओर झुक चुकी थी। आपने वतन को छोड़ दिया और समंदर की नहीं बल्कि ज़मीनी रास्ते से सफ़र करते हुए एशिया से तिब्बत में दाख़िल हुए। कुछ दिन आपने तिब्बत में ठहराव किया एक रूहानी ख़ामोशी और तज़किया-ए-नफ़्स का मुक़ाम।

    यहीं से आपका रूहानी जलाल इस क़दर नुमायाँ हुआ कि लोग आपको तेग़-ए-बरहना या'नी नंगी तलवार जैसे जलाली लक़ब से पुकारने लगे एक ऐसा नाम जो आपकी रूहानी हैबत और बिसात-ए-अस्रार को बयान करता है।

    मख़दूम अहमद चर्म-पोश की ज़िंदगी का एक अहम हिस्सा सैर-ओ-सियाहत में गुज़रा। आपने हमदान (ईरान) की ज़मीन को हिदायत के उजालों से रौशन किया, फिर वहाँ से तिब्बत की ऊँची और पथरीली वादियों की तरफ़ रुख़ किया। तिब्बत में आपने बड़ी तादाद में फ़ौज और सिपहसालारों को रूहानी ताक़तों से मालामाल किया। इसके बाद आपने हिंदुस्तान की ओर क़दम बढ़ाया और बिहार में नालंदा के इलाक़े बिहार शरीफ़ को अपनी ठहराव की जगह बनाया। उस वक़्त वहाँ आपके ख़ाला-ज़ाद भाई हज़रत मख़दूम-ए-जहाँ पहले से तशरीफ़ फ़रमा थे। आपकी आमद से इस पवित्र जगह को और भी इज़्ज़त और रौनक़ मिली।

    इल्म और मारिफ़त की ख़िदमत:

    आपके पास आने वालों की ता'दाद बढ़ने लगी। आपने उन्हें मारिफ़त (रूहानी ज्ञान) का जाम पिलाया। तज़्किरा-निगारों के मुताबिक़, आप आ’रिफ़-ए-कामिल थे।

    अवाम-व-ख़ास दोनों आप को बेशुमार करामतों की वजह से दिल से मानते थे।

    जैसे कि:

    अश-शैख़ युह्यि युमीत (मक्खी को ज़िंदा करना)

    मुनिसुल-क़ुलूब

    मिरअतुल-कौनैन

    तज़्किरतुल-कराम

    इन तमाम किताबों में आपके फ़ज़ाइल और करामात को बेहतरीन अंदाज़ में दर्ज किया गया है। साथ ही, सिलसिला-तुल-आली के एक सूफ़ी ने आपके फ़ज़्ल-ओ-करम को फ़ारसी शाइरी में बड़े ख़ुलूस से बयान किया है।

    खानदानी ज़िंदगी :

    शाह मोहम्मद नूर सुहरवर्दी बिहारी (सज्जादा-नशीन: दरगाह मख़दूम अहमद चर्म-पोश) अपनी किताब तज़किरा-ए-मख़दूम सय्यद सुलतान शाह अहमद चर्म-पोश में लिखते हैं कि:

    बिहार शरीफ़ आने के बाद आपकी शादी अपनी ही क़ुफ़्व (बराबर) में हुई। इस शादी से आपको दो बेटे हुए:

    दीवान शाह सिराजुद्दीन अहमद

    दीवान शाह ताजुद्दीन अहमद

    आपने दोनों की तालीम-ओ-तर्बियत फ़रमाई और उनकी शादी भी कर दी। शाह सिराजुद्दीन को ख़ुदा ने एक बेटा अता किया और शाह ताजुद्दीन को एक बेटी। बाद में शाह सिराजुद्दीन अहमद के बेटे शाह अब्दुर्रहमान और शाह ताजुद्दीन की बेटी बीबी वासिआ’ के बीच शादी हुई और यहीं से मख़दूम का वंश जारी हुआ।

    सय्यद मोहम्मद आ’ला उर्फ़ शाह बढ़

    सय्यद रुकनुद्दीन अबूल फ़त्ह उर्फ़ मनझन

    सय्यद महमूद

    सय्यद नसीरुद्दीन अहमद शेर-दस्त

    सय्यद हबीबुल्लाह

    सय्यद महबूबुल्लाह

    सय्यद महबूब-सानी

    सय्यद मोहम्मद

    सय्यद सिराजुद्दीन सानी

    सय्यद नूरुल्लाह

    सय्यद मुजीबुल्लाह

    सय्यद आ’ला असग़र

    सय्यद मुहम्मद जैसे सूफ़ियों के ज़रिये से आज तक ये सिलसिला जारी है।

    आपके वंशज आज भी उसी सिलसिले को जारी रखे हुए हैं। इनमें सय्यद मोहम्मद आला (शाह बढ़), सय्यद नसीरुद्दीन शेर-दस्त, सय्यद महबूबुल्लाह, सय्यद सिराजुद्दीन सानी और सय्यद मुजीबुल्लाह जैसे नाम शामिल हैं।

    आप पहले फ़ारसी के दीवान वाले शाइर माने जाते हैं। डॉ. शाह अली अरशद शरफ़ी के मुताबिक़ आपके दीवान का क़लमी नुस्ख़ा उनके पास मौजूद है जिसमें 306 ग़ज़लें और कुल 3074 शेर शामिल हैं। इसका नाम दीवान-ए-अहमदी है। इसके अलावा एक मलफ़ूज़ ज़िया-उल-क़ुलूब भी मौजूद है, जिसे आपके मुरीद शैख़ अलाउद्दीन अली बिन इब्राहीम सूफ़ी ने जमा किया था। इसका उर्दू अनुवाद भी। शाह अली अरशद शरफ़ी ने किया है।

    दाग़-ए-शकोह-ए-ख़ुस्रवी तेग़-ए-बरहना-ए-फ़क़ीर

    रश्क-ए-हरीर-ओ-पर्नियाँ मलबूस चर्म पोश का

    मख़दूमी कीजिए क़बूल ये नज़्र-ए-नावक-ए-हक़ीर

    हक़ तो ये है कि मन्क़बत का हक़ अदा ना हो सका

    आपका विसाल 26 सफ़र 776 हिजरी, यानी 6 अगस्त 1374 ईस्वी को 118 वर्ष की आयु में बिहार शरीफ़ में हुआ। मूनिसुल-क़ुलूब की 69वीं मजलिस में लिखा है कि जब मख़दूम अहमद चर्म-पोश ने दुनिया से पर्दा किया, उस समय हज़रत मख़दूम-ए-जहाँ भी वहाँ मौजूद थे। जब उनकी क़ब्र के लिए ज़मीन खोदी गई, तो वहाँ से एक “उंगली” ज़ाहिर हुई, जो एक रूहानी निशानी थी। इस कारण, मख़दूम-ए-जहाँ ने अपनी क़ब्र के लिए शहर से बाहर, निर्जन ज़मीन पसंद की, जहाँ आबादी नहीं थी। हज़रत की वफ़ात की तारीख़ मख़दूम-ए-यगाना की तहरीरों से 776 हिजरी में होने की पुष्टि होती है।

    हर साल आपका उर्स बिहार शरीफ़ में दरगाह अंबेर पर मनाया जाता है। दूर-दराज़ से श्रद्धालु अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए वहाँ हाज़िर होते हैं और दुआओं की क़ुबूलियत के साथ लौटते हैं। आपकी पवित्र दरगाह के अहाते में हज़रत शम्स बल्ख़ी और आपके परिवार और वंश के सज्जादा-नशीन भी दफ़न हैं। जैसा कि शाह अकबर दानापूरी फ़रमाते हैं:

    मुझ सा भी सहीहुन-नसब अकबर कोई क्या कम है

    सिलसिला अपना किसी ज़ुल्फ़ से जा मिलता है।

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